बाल कविता

आओ मेघा

आओ मेघा आओ मेघा
आकर जल बरसा जा
तप रही इस प्यारी धरती को
आकर प्यास बुझा जा
उमस भरा इस दिन में
ठंढक थोडा दिला जा
करने को कुछ मन करता
स्कूल जाने मे भी डर है लगता
खेल कूद सब बंद पडे है
संगी साथी सब सुस्त पडे है
भीषण गर्मी झेल रहे है
पशीने से लथपथ होकर
शिर्फ तुम्हे ही पुकार रहे है
अब तो पुकार सुन जा
आकर जल बरसा जा
आओ मेघा आओ मेघा|
    निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४