राजनीति

कितना असर करेगी गांधी परिवार और पीके की रणनीति?

अब कांग्रेस की प्रचार की रणनीति धीरे-धीरे ही सही जनता के सामने आने लग गयी है। जुलाई के अंतिम दिनों में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने रैंप पर चलते हुए अपने सभी विरोधियों पर ख्ुालकर हमला बोला और पीएम मोदी की नीतियों का खुलकर मजाक बनाया। लेकिन बाद में स्वयं भी सोशल मीडिया में मजाक के पात्र बन गये। लखनऊ में राहुल के उद्घोष के बाद अब श्रीमती सोनिया गांधी वाराणसी में रोड शो कर रही हैं और निश्चित तौर पर वे भी पीएम मोदी के विकास के दावांें की पोल खोलने के अभियान का श्रीगणेश ही कर रही हैं। इधर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर ने एक साक्षात्कार में जोरदार दावा किया है कि उनको जो लोग दगा कारतूस कह रहे हैं उन लोगों की चुनावों के बाद खिल्ली उड़ेगी। लेकिन यह तो भविष्य ही बतायेग कि किसकी खिल्ली उड़ने वाली है।

विगत 27 वर्षों से सत्ता से बाहर चल रही कांग्रेस ने प्रोफेशनल पीके के सहारे बेसिरपैर के घिसे-पिटे मुददों व वोटबैंक के समीकरणों को साधने का प्रयास करते हुए विगत दिनों बस यात्रा के माध्यम से प्रदेश में अपने अच्छे दिन लाने का प्रयास प्रारम्भ किया है। कांग्रेस पार्टी ने सवर्णों का वोट पाने के लिए अपनी नकली धर्मनिरपेक्षता का प्रदर्शन करते हुए बस यात्रा का प्रारम्भ पूजा पाठ से करवाया। इस बस यात्रा के दौरान कांग्रेसी नेताओं को यह अनुभव हुआ कि 27 वर्षों में प्रदेश का बुरा हाल हो गया है और प्रदेश बेहाल हो चुका है। यही कारण है कि कांग्रेस ने नारा दिया है ‘27 साल, प्रदेश बेहाल’। जबकि गहराई में जांच की जाये तो यह साफ पता चल रहा है कि आज प्रदेश का हाल बेहाल करने के पीछे कांग्रेस का ही पुराना शासन जिम्मेदार रहा है। आज प्रदेश पूरी तरह से भ्रष्टाचार, जातिवाद और वंशवाद तथा मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति में पूरी तरह से पिसता जा रहा है। प्रदेश में विकास की धार तो कांग्रेसी शासनकाल के दौर में ही कुंद हो गयी थी। बेरोजगारी का कारण आज कांग्रेस ही है। प्रदेश का गन्ना किसान आज जिन समस्याओं से घिरा हुआ है उनके पीछे भी कांग्रेस ही है।

प्रदेश में कांग्रेस का शासन तो विगत 27 वर्षों से नहीं है, लेकिन 65 वर्षों से कांग्रेस का केंद्र में शासन रहा है और वह भी सपा और बसपा के सहारे सत्ता चलाती रही है। इस बार वह राज्य में सत्ता वापसी का सपना संजो रही है लेकिन वह इन्हीं सपा व बसपा के सहारे पुनर्जीवित होने का प्रयास या फिर सत्ता के करीब आने का प्रयास कर रही है। जब कांग्रेस के नेताओं ने प्रदेश में अपना पहला रोड शो किया तब उनका मंच ढह गया और उसके बाद जब कांग्रेसी नेता बस पर सवार हुए तब मुख्यमंत्री पद की दावेदार दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की तबियत बिगड़ गयी। लेकिन इस बीच शीला दीक्षित के साहस की दाद देनी होगी कि उन्हें बस में बैठकर कम से कम यह पता चल गया कि यूपी बेहाल तो है और उसके पीछे असली कारण क्या है उनको यह लगा कि सपा, बसपा और भाजपा के कारण। जबकि वास्तविकता यह है कि प्रदेश के अधिकांश कल-कारखाने कांग्रेस के शासनकाल में ही बंद होने लग गये थे। कांग्रेस की मुख्यमंत्री पद की दावेदार शीला दीक्षित को बस में बैठकर यह भी आभास हो गया कि जब से कांग्रेस की ओर से उनको मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाया गया है भाजपा चैथे नंबर पर चली गयी है और सपा आदि पर्दे से ही गायब हो गयी है। शीला की नजर में बस कांग्रेस को थोड़ी सी मेहनत की और जरूरत है।

आज जो कांग्रेस सत्ता में वापसी का जो सपना संजो रही है उसे अपने आप से पूछना चाहिये कि आखिर उसकी ओर से क्या गलतियां हुई हैं, जिनके कारण आज प्रदेश का हर जाति, वर्ग, समुदाय और धर्म का मतदाता उससे छिटकता चला जा रहा है। कांग्रेस के सूत्रों से खबरें चल रही हैं कि कांग्रेस अपने चुनाव घोषणा पत्र में सवर्ण मतदाता को लुभाने के लिए आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण का लालच देने की भी बात कर रही है। आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णो को कांग्रेस विगत 65 वर्षों के शासनकाल में भी संविधान संशोधन के माध्यम से आरक्षण दे सकती थी उसका तो सब जगह बहुमत भी था वह कर सकती थी लेकिन अब तक उसने ऐसा नहीं किया। सवर्ण मतदाता को यह बात अच्छी तरह से परख लेनी चाहिये कि आर्थिक आधार पर आरक्षण हो ही नहीं सकता। यह केवल जनमानस को ठगने की बात है। कई गैर कांग्रेसी दल पहले से ही आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात कह चुके हैं। आर्थिक आधार पर आरक्षण महज चुनावी स्टंट का महा माया जाल भर है।

दूसरी तरफ कांग्रेस अपने पुराने मुस्लिम वोट बैंक को वापस लाने का खाका भी खींच रही है। मुस्लिम वोट बैंक को वापस लाने के लिए कांग्रेस ने गुलाम नबी आजाद को अपना प्रभारी नियुक्त तो किया है और उनके साथ ही राज्यभर में एक दर्जन से अधिक मुस्लिमों को जिला स्तर पर प्रभारी बनाया है। कांग्रेस कम से कम सौ अल्पसंख्यक सम्मेलनों का आयोजन करने जा रही है तथा इस बात की संभावना भी व्यक्त की जा रही है कि आगामी विधानसभा चुनावों में मुस्लिम वोट बैंक को हासिल करने के लिए कांग्रेस कम से कम 100 मुस्लिमों को अपना उम्मीदवार बनाने जा रही है। यही कारण है कि लोकसभा चुनावों के दौरान पीएम मोदी के खिलाफ जमकर जहर उगलने वाले इमरान मसूद को उपाध्यक्ष नियुक्त किया है और इमरान मसूद ने इसी रणनीति के तहत पीएम मोदी के खिलाफ एक बार फिर जहर उगल राजनीति शुरू कर दी है।

आज प्रदेश की सत्ता में पुनर्वापसी कांग्रेस के लिए बहुत असान नहीं रह गयी है। प्रदेश में मुख्यमंत्री पद की दावेदार शीला दीक्षित दिल्ली में भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी हुई हैं तथा उन पर जांच भी चल रही है। वहीं दूसरी ओर उनके सांसद पुत्र संदीप दीक्षित ने यह कहकर और परेशानी बढ़ा दी है कि उनकी मां शीला दीक्षित को कामनवेल्थ घोटाले में एक साजिश के तहत फंसाया गया था। आज की तारीख में कांग्रेस के पास अपनी तारीफों के पुल बांधने का कोइ्र्र बड़ा कारण नहीं है। आगामी दिनों में दीक्षित के लिए समस्या गंभीर हो सकती है। अगस्ता वैस्टलैंड मामले की जांच आगे बढ़ रही है, उसमें कांग्रेस के कई बड़े नेता फंस सकते हैं। कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि प्रदेश में उसका संगठन ही बेहाल है और उसका अपना प्रचारतंत्र बेहाल है। फिर उसकी नजर में 27 साल बनाम प्रदेश बेहाल तो हो ही जायेगा।

दूसरी तरफ कांग्रेस अभी यह नहीं तय कर पा रही है कि वह छोटे दलों के साथ चुनावों के पहले गठबंधन करेगी या नहीं। गठबंधन को लेकर कांग्रेसी खेमे में गंभीर मतभेद की खबर है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर फिलहाल जनता से ही गठबंधन करने की बात कह रहे हैं। फिलहाल तो अभी प्रदेश से कहीं अधिक कांग्रेस ही बदहाल नजर आ रही है। वहीं भाजपा व अन्य दलों ने कांग्रेस की बस यात्रा को फ्लाप शो बताया है।

मृत्युंजय दीक्षित