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हिम तेन्दुआ

him temduaइस अनन्त ब्रह्माण्ड के अन्तर्गत विभिन्न ग्रहों व उपग्रहों से युक्त सौर परिवार और उस सौर परिवार के सदस्य के रूप में अवस्थित पृथ्वी नामक ग्रह का अत्यन्त ही महत्वपूर्ण स्थान है। पृथ्वी जलीय व स्थलीय भाग के रूप में स्थित है। अनुकूल प्राकृतिकता के कारण यह जैविक संरचना के लिए बहुत ही उपयोगी रही है। जीव उत्पत्ति व विकास के लिए पृथ्वी की प्रकृति अनुकूल होने के कारण इसके जलीय व स्थलीय क्षेत्र में अनेकानेक जीव-जन्तु एवं विविध प्रकार की वनस्पति पाई जाती है। इसका मौसम चक्रवत् परिवर्तनीय रहा है। इसी के अनुरूप यहां का जीव जगत् विकसित होता रहता है। पृथ्वी में जहां जल से भरे गहरे समुद्र/सागर विद्यमान हैं, वहीं ऊंची-ऊंची पर्वत चोटियों के साथ-साथ दूर-दूर तक फैले मैदान व पठारी भाग विद्यमान हैं। जीव-जन्तुओं में विशालकाय पशुओं से लेकर हिंसक वन्यप्राणियों के साथ-साथ मध्यम व सूक्ष्मातिसूक्ष्म प्राणियों सहित पेड़-पौधे आदि वानस्पतिक प्रजातियों की वैविध्यता है। इसी जैव विविधता के अन्तर्गत पृथ्वी के उच्च पर्वतीय बुग्याली/हिमालयीय क्षेत्र में पाया जाने वाला एक सुन्दरतम व प्राणी जगत् का महत्वपूर्ण सदस्य हिम तेन्दुआ है।
जड़ चेतन ये कीट पतंगा, यही धरा की जैव विविधता। रक्षित-विकसित करते जीवन, देन है इनकी जलवायु शुद्धता।।

हिम तेन्दुआ वन्यजीव प्रजाति का वह महत्वपूर्ण पशु है, जिसकी किसी भी क्षेत्र विशेष में विद्यमानता उस क्षेत्र के जैव विविधता के प्रभाव को बढ़ा देती है। हिम तेन्दुआ, जिसे आंग्ल भाषा में स्नो लेपर्ड के नाम से जाना जाता है, एक दुर्लभतम प्रजाति का वन्यजीव है। इसकी महत्ता को देखते हुए इसका संरक्षण एवं विकास सुनिश्चित करने के उद्देष्य से इस प्राणी को अनुसूची-01 में रखा गया है। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 (यथा संशोधित 1991) में निहित प्राविधानों के अनुसार अनुसूची-01 के अन्तर्गत उन वन्यप्राणियों को श्रेणीबद्ध किया जाता है, जो विलुप्ति के कगार पर हैं और पर्यावरणीय महत्ता की दृष्टि से अत्यन्त उपयोगी होते हैं। इस दृष्टि से हिम तेन्दुआ हिमालय क्षेत्र का वह अनन्यतम प्राणी है, जिसके अभाव में किसी क्षेत्र विशेष की जैविक श्रेष्ठता का निर्धारण किया जाना बिना फूल के पुष्पवाटिका का आंकलन करने के समान माना जायेगा। पेन्थर प्रजाति के वन्यजीव परिवार से सम्बन्धित होने के फलस्वरूप इसका वैज्ञानिक नाम पेन्थरा अन्सिया है। उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाये जाने वाले के कारण इस वन्यजीव को हिम तेन्दुआ कहा जाता है। यह अधिकांश हिमालयीय परिक्षेत्र के 3350 मी0 से ऊपर के क्षेत्र में पाया जाता है। इसके शरीर में बालों की सघनता पायी जाती है, सम्भवतः हिम क्षेत्र की शीतलता से बचने के लिए ही प्राकृतिक रूप से इसके इतने घने बाल होते हैं। यह वन्यजीव इस जैव मण्डल के अलावा देश के कई उच्चतम हिमालयी क्षेत्र में पाया जाता है।

सर्दियों में इसके प्राकृत वास क्षेत्र में बर्फवारी होने पर यह जानवर भोजन की तलास में 2000 मी0 तक के नीचले क्षेत्र में आ जाता है। यह ज्ञात होता है कि इसके मुख्यतम भोजन की पूर्ति इस क्षेत्र में पाये जाने वाले भरड़ के मांस से होती है। इसके अतिरिक्त थार, कस्तूरी मृग आदि सहित उक्त क्षेत्र में पाये जाने वाले वन्यजीवों के शिकार से यह अपनी उदर पूर्ति सुनिष्चित करता है। हिमालयी क्षेत्र की प्राकृतिकता के अनुसार यह जानवर हल्के काले-भूरे धब्बों/चकते के साथ हल्के-से सफेद रंग का होता है। इसका औसत वजन 68 किग्रा से 79 किग्रा तक पाया जाता है। इस प्रजाति के नर-मादा का शीतकाल के तीन माह अन्र्तगत समागम काल होता है, समागम पश्चात् मादा 90 से 115 दिन अन्र्तगत 01 से 04 शावकों को जन्म देती है।

यह जानवर अत्यन्त संवेदनशील है, जो कि आसनी से नजर नहीं आ सकता है। युनेस्को प्रोजेक्ट के तहत लगाये गये कैम्पिंग कैमरे से यह वन्यजीव इस जैव मण्डल के नियन्त्रणाधीन नन्दादेवी राष्ट्रीय उद्यान के क्षेत्रान्तर्गत भारत-तिब्बत अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पहुंच मार्ग के नीती घाटी, मलारी नामक स्थान में प्रथम बार 10, अप्रैल/2011 दिखाई दिया। इस क्षेत्र में इस सुन्दरतम व दुर्लभ प्रजाति के वन्यजीव की उपस्थिति का ज्ञान प्राप्त होने पर प्रकृति व वन्यजीव प्रेमियों में बहुत अधिक उत्साह दिखाई दे रहा है। यही नहीं माह, 17, नवम्बर व 02, दिसम्बर/2013 में यह वन्यजीव इसी प्रकार कैमरे के माध्यम से उत्तरकाशी स्थित गंगो़त्री राष्ट्रीय उद्यान के गंगोत्री-गोमुख ट्रैक मार्ग के समीप भी दो बार दृष्टिगत हुआ। माह, जनवरी/2014 के अन्त में पुनः गंगोत्री रा.पा. क्षेत्र में दो हिम तेन्दुआ उपस्थिति पाई गई। इस आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि अपने प्राकृत वास के विभिन्न स्थानों/क्षेत्रों में अपेक्षित मात्रा में यह दुर्लभ प्राणी निश्चित ही हमारी प्रकृति की शोभा बढ़ा रहा होगा। यह प्राकृतिक वैभवता के लिए बहुत ही शुभ संकेत है। जहां प्रकृति प्रेमियों में इस दुर्लभ व विलुप्त प्रजाति के वन्यप्राणी के मिलने से खुशी है, वहीं वन तस्करों से इसे सुरक्षित रखने की चिन्ता भी व्याप्त है। क्षेत्र में लगे इन कैमरों की सहायता से शिकारियों की इस क्षेत्र में गतिविधि का भी पता चलने से इनकी सुरक्षा के लिए किये जाने वाले उपायों में भी ये कैमरे सार्थक सिद्ध हो रहे हैं। क्षेत्र में शिकारियों की अवैध गतिविधि के लिए कैमरा ट्रैपिंग की विधि बहुत उपयोगी है। इस प्रणाली का उपयोग विभिन्न संवेदनशील क्षेत्रों में किये जाने से इसकी सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है। उत्तराखण्ड में इसके संरक्षण हेतु भारत सरकार उत्तराखण्ड सरकार वन विभाग के माध्यम से वर्तमान (वर्ष 2013-14) में हिम तेन्दुआ संरक्षण एवं विकास योजना को स्वीकृति प्रदान कर संचालित करने का प्राविधान किया गया है। जिसमें भारतीय वन्यजीव संस्थान ते साथ-साथ नेशनल टाईगर संरक्षण आॅथरिटी का महत्वपूर्ण योगदान है।

हाल के वर्षों का आंकलन किया जाय तो समाचार पत्रों व विभिन्न माध्यमों से प्राप्त जानकारी के आधार पर ज्ञात होता है कि शिकारियों द्वारा इसका अवैध शिकार कर इसके अमूल्य अंग-प्रत्यंगों का व्यापार करने का कुकृत्य किया जा रहा है। जिसे सम्बन्धित सरकारी तन्त्र की सतर्कता से नाकाम किया जाता रहा है। इसके विभिन्न अंग व खाल की कीमत अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में करोड़ों रूपयों में आंकी जाती है। इस उच्चतर आंकलन के मद्देनजर तस्करों से इसे बचाये जाने की चुनौतियां तो हैं ही लेकिन प्रशासन एवं वन्यजीव प्रेमियों की सतर्कता के प्रभाव से इसके शिकार पर प्रभावी नियन्त्रण जारी है। इसमें सम्बन्धित विभाग के स्तर से जनजागरूकता अभियान के साथ-साथ सघन वन भ्रमण कर वन अपराध की रोकथाम सुनिश्चित की जा रहा है। इस अमूल्य जैविक धरोहर को बचाये रखना शासन/प्रशासन के साथ-साथ हम सबका दायित्व है, क्योंकि प्राकृतिकता की रक्षा से ही सभी का जीवन संरक्षित-सुरक्षित रह सकता है।

शम्भु प्रसाद भट्ट ’स्नेहिल’

शम्भु प्रसाद भट्ट 'स्नेहिल’

माता/पिता का नामः- स्व. श्रीमति सुभागा देवी/स्व. श्री केशवानन्द भट्ट जन्मतिथि/स्थानः-21 प्र0 आषाढ़, विक्रमीसंवत् 2018, ग्राम/पोस्ट-भट्टवाड़ी, (अगस्त्यमुनी), रूद्रप्रयाग, उत्तराखण्ड शिक्षाः-कला एवं विधि स्नातक, प्रशिक्षु कर्मकाण्ड ज्योतिषी रचनाऐंः-क. प्रकाशितःः- 01-भावना सिन्धु, 02-श्रीकार्तिकेय दर्शन 03-सोनाली बनाम सोने का गहना, ख. प्रकाशनार्थः- 01-स्वर्ण-सौन्दर्य, 02-गढ़वाल के पावन तीर्थ-पंचकेदार, आदि-आदि। ग. .विभिन्न क्षेत्रीय, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की पत्र/पत्रिकाओं, पुस्तकों में लेख/रचनाऐं सतत प्रकाशित। सम्मानः-सरकारी/गैरसरकारी संस्थाओं द्वारा क्षेत्रीय, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के तीन दर्जन भर से भी अधिक सम्मानोपाधियों/अलंकरणों से अलंकृत। सम्प्रतिः-राजकीय सेवा/विभिन्न विभागीय संवर्गीय संघों तथा सामाजिक संगठनों व समितियों में अहम् भूमिका पत्र व्यवहार का पताः-स्नेहिल साहित्य सदन, निकटः आंचल दुग्ध डैरी-उफल्डा, श्रीनगर, (जिला- पौड़ी), उत्तराखण्ड, डाक पिन कोड- 246401 मो.नं. 09760370593 ईमेल spbsnehill@gmail.com