गीतिका/ग़ज़ल

हमे अब इश्क में फिर से..

हमें अब इश्क में फिर से हदों के पार जाना है।
वही किस्सा पुराना फिर वफा का दोहराना है॥

किसी का दिल किसी की आरजू हो सकते है हम भी।
चलो मिलकर जहाँ वालो को अब हमको बताना है॥

कहीं पर चाँद की बाते कहीं रोटी की गोलाई।
जमाना है वहीं पर आज भी किस्सा पुराना है॥

किसी को रोशनी हासिल किसी को धुंध के साये।
कहीं पर जाम छलके हैं कहीं गम का पसाना है॥

उसे जो चाहिये था मिल गया सब खेल है बाकी।
हमारा दिल खिलौना है उसे बस दिल बहलाना है॥

यहाँ भी लोग रहते हैं कभी इस और भी देखो।
अमीरों तुम को भी आखिर खुदा को मुंह दिखाना है॥

कमाया कुछ नही बंसल न रुतबा या कि फिर दौलत।
मगर फिर भी हमें दुनियाँ ने पहचाना है जाना है॥

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.