और कितना कर गिरेगा ये आदमी
और कितना कर गिरेगा ये आदमी
गिरावट के चरम पर खड़ा ये आदमी
दूसरों के दर्द मे बहुत मुस्कुराता है
ईर्ष्या की आग मे जल रहा ये आदमी
बाप ही बेटी की अस्मत लूट रहा
कैसे करे किसी पे भरोसा ये आदमी
बेटी को ब्याहने की चिंता सता रही
दहेज़ की बोली पर बढाता ये आदमी
एक गज जमीन की भाई को बढ़ गई
भाई को मारने की सोचता ये आदमी
माँ बाप ने जिसे लाड-प्यार से पाला
उन्हें वृधाश्रम छोड़ आता ये आदमी
धर्म जाति का झूठा चोला ओड़कर
दूसरों पे अत्याचार करता ये आदमी
ना तो अदब रहा और ना रही हया
इक दूसरे की इज्ज़त भूला ये आदमी
सबकुछ है मगर संतोष खो गया
बहुत कुछ चाहता पाना ये आदमी
माया के इतना करीब हो गया
खुद से ही दूर हो चला ये आदमी
चारों ओर इंसानियत का क़त्ल हो रहा
नर्क का अँधेरा यहीं लाया ये आदमी
अर्जुन सिंह नेगी
नारायण निवास, कटगाँव,
तहसील निचार जिला किन्नौर
हिमचल प्रदेश 172118
बहुत ही बढ़िया रचना ।
धन्यवाद सर