बाल कविता

देखो आया मदारी वाला

देखो आया मदारी वाला
बन्दर बन्दरीयॉ साथ मे लाया
ठुमक ठुमक के नाच रहे है
अपना करतब दिखा रहे है
बच्चो की टोली टूट पडी है
हँसी ठिठोली हो रही है
ताली की गड गडाहट से
महफिल खुब जम रही है
कोई नाचे कोई झुमे
कोई मस्ती मे राग अलापे
बन्दर का खेल देखने के लिये
घर से लाते रूपयें पैसे
जैसे खेल खत्म हुआ
सभी अपने अपने घर चले
भीड सब तीतर बितर हुआ
ऐसा लगे जैसे
यहॉ कुछ हुआ ही नही
बच्चो की महफिल ही कुछ ऐसी
पल में रौनक पल मे उदासी
फिर भी सबको यही है भाता
बच्चो का बचपन होता है प्यारा
   निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४