गीत/नवगीत

गीत : तेरी दरस दीवानी

उसने कहा था, जब बरसेगा आसमान से पानी
याद तुझे करती होगी इक, तेरी दरस दीवानी।

मेरी पायल की रुनझुन, बूँदों की सरगम होगी,
हँसी मेरी मस्तानी-सी, बिजली की चमचम होगी,
मेरे कुंतल की श्यामलता, मेघों में पाओगे
मेरे दिल की आवाज़ें, बादल की गर्जन होगी,
पवन सुनाएगी तुझको, रूक-रुक कर मेरी वाणी
याद तुझे करती होगी इक…

नीरद-रथ पर चढ़ कर सावन, जब मल्हार गाएगा,
और ताल पर जब भादौ की, अमृत बरसाएगा,
दादुर मिल जब गान करेंगे, झींगुर जब नाचेंगे,
इंद्रधनुष की वरमाला को, अंबर पहनाएगा,
बिखरी होगी कण-कण में जब, मेरी प्रेम-निशानी,
याद तुझे करती होगी इक…

आसमान का सागर, धरती की सब प्यास बुझाए
पर मेरे मन का आँगन ही, क्यों सूखा रह जाए?
नैनों के पनघट पर जब भी, स्वप्न सदा मैं जाऊँ,
क्यों मेरे आशा की गागर ही रीती रह जाए?
कहीं विरह में बीत न जाए, बरखा- संग जवानी
याद तुझे करती होगी इक….

गर बरखा के साथ संदेशा, तुम मेरा पा जाना,
जो बदली के घूंघट में तुम, मेरे दर्शन पाना,
है इतनी-सी अरज हमारी, ऐ मेरे जीवन-धन!
मेघों की तुम लेकर के डोली, जल्दी से आ जाना,
पा जाएगी फिर से विरहन, अपनी प्रीत पुरानी,
याद तुझे करती होगी इक…

शरद सुनेरी

2 thoughts on “गीत : तेरी दरस दीवानी

  • विजय कुमार सिंघल

    शानदार गीत !

  • विजय कुमार सिंघल

    शानदार गीत !

Comments are closed.