कविता

कैसे?

जरा सोच के देखो
आज़ाद हिंद के वासी
यातनाओं के कारागार में
“इँकलाब” के नारे कैसे गुँजें होंगे ?
पाँव में थी बेड़ियाँ तपते लोहे की
दो कदम वो कैसे चलते होंगे ?
सूखी रोटी चबा चबाकर
वो कैसे पलते होंगे ?
आज़ादी का स्वप्न लिये ,लहु को डाल दिये में
वो कैसे जलते होंगे ?
माँ की फटती छाती बेटे को देख
समंदर बहा होगा,वो आँसू आँखों से
कैसे टपके होंगे ?
36 करोड़ की जनता खातिर
फाँसी पर हँसते-हँसते
वो कैसे चढ़ते होंगे ?

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733