कविता

निहार रही उन बच्चे को

आज मै उस मोड पर खडी होकर
निहार रही थी उन बच्चे को
जहॉ से झुंड के झुंड
एक साथ हिलमिल कर
आपस मे बाते करते
कभी हंसी कभी मजाक करते
एक ड्रेस पहने
रंग बिरंग के बैग लियें
विद्यालय को जाते दिखते
अपने रंगो मे रंग कर
दूनिया से बेफिकर होकर
बस अपना ही सुनते
जो उनके मन मे आये
सिर्फ वही करते
इन्हे क्या पता दूनियादारी
कि एक दिन इन्हे भी संभालनी है
सबकी जिम्मेदारी
इन्हे देख याद आ गया
अपना भी बचपना
मै भी कभी इन्ही की तरह
बिताई थी अपना बचपन
कभी हँसा करती थी खिलखिलाकर
लेकिन आज दिखावे मात्र की हँसती हूँ
बस दूसरे को खुश रखने के लिये
कभी सोची नही थी कि छिन जायेगा
अपना प्यारा बचपन
क्या मेरे जैसे ही छिन जायेगा इनका बचपन
क्या इनके प्यारे हँसी भी गुम हो जायेगा
क्या दोस्तो के संग रहना भी छुट जायेगा
क्या इन्हे भी संभालनी पडेगी जिम्मेदारी
आज बस यही बात सोच रही थी
खडे होकर उस मोड पर|
निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४