लघुकथा

बाग़बानी

माथुर साहब को बागबानी का बहुत शौक था । घर का आँगन बहुत बड़ा था सो उन्होंने विविध प्रकार के पेड़ पौधे लगाये थे।बच्चों की तरह वे उनकी देखभाल करते । अपने बेटे से भी कई बार कहते ,” बेटा ,बागबानी करना सीख लो आगे काम आएगा ।”

पर बेटा उनका मज़ाक उड़ाता।बेटा एक कंपनी में नौकरी करता था पर परिवार की ज़िम्मेदारियों से भागता था। बाहर दोस्तों के बीच रहना पार्टी करना और पैसे उड़ाने में वह अपनी शान समझता था।कई बार समझाने के बाद भी उसमे कोई अंतर नहीं आया।पर माथुर साहब को अपने खून पर भरोसा था । उनको भरोसा था कि वक़्त सब कुछ सिखा देगा और ऐसा समय आएगा कि बेटे को उसकी गलतियों का एहसास होगा ।

बसंत का आगमन , पपीहे की गूंज , पक्षियों का कलरव , बसंती हवा में एक नवांकुर का घर में आगमन ।माथुर साहब फूले न समाये, घर वालों की खुशियों का भी ठिकाना न रहा | बच्चे का नाम “बसंत “रखा गया।माथुर साहब ने अपने बेटे से कहा, ” बेटा, अब तुम भी पिता बन गये हो, तुम्हारी ज़िम्मेदारियाँ और बढ़ गयी हैं।”

बेटे ने उनसे आशीर्वाद लिया और बोला ,” हाँ बाबा, अब मुझे आपकी बागबानी का अर्थ समझ आ गया है |”

कल्पना भट्ट

कल्पना भट्ट श्री द्वारकाधीश मन्दिर चौक बाज़ार भोपाल 462001 मो न. 9424473377