धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

भाई दूज भाई-बहन के पवित्र संबंधों को गतिमान रखने का प्रमुख पर्व

ओ३म्

हमारा देश अनेक पर्व और आध्यात्मिक मूल्यों का देश है। सभी पर्वों को मनाने के पीछे एक केन्द्रीय विचार होता है जिसका प्रचार प्रसार व जिसे जीवन्त रुप देने के लिए पर्व मनाये जाते हैं। कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को भाई दूज पर्व मनाया जाता है। हमें लगता है कि वेदमन्त्र मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन्मा स्वसारमुत स्वसा। सम्यंचः सव्रता भूत्वा वाचं वदत भद्रया।।’ की भावना का प्रचार व उसे देश व समाज में दृण बनाने के लिए इस पर्व का आरम्भ मध्यकाल व उसके बाद मुगलों के आक्रमण व उनकी सल्तनत कायम होने से उत्पन्न परिस्थितियों के कारण अस्तित्व में आया था। भारत में विदेशी मुगल आक्रमणकारियों ने जब आक्रमण किया तो अनेक अमानुषिक कार्य तो किये ही, इसके अतिरिक्त अनेक घिनौने कार्यों को अंजाम देते हुए इस देश की नारी जाति का घोर अपमान भी किया। यह उन विदेशी विधमी आक्रमणकर्ताओं के अपने संस्कार थे जिसमें वह पले व पोषण को प्राप्त हुए थे। यदि उनके संस्कार अच्छे होते तो वह कम से कम नारियों पर अत्याचार न करते और न ही नारी के अपमान के वह घिनौने कार्य करते जो उन्होंने किये। इन अत्याचारों से सुरक्षित रहने के लिए ही भाईदूज का पर्व अस्तित्व में आया लगता है। कुछ इसे प्राचीन पर्व भी मान सकते हैं परन्तु हमें लगता है कि जिस प्रकार माता-पुत्र, पिता-पुत्र व भाई-भाई के प्रेम पर आधारित कोई पर्व नहीं मनाया जाता इसी प्रकार भाईदूज पर्व की परिस्थितियां उत्पन्न होने से पूर्व यह पर्व अस्तित्व में नहीं आया था। परिस्थितियां उत्पन्न होने पर यह पर्व अस्तित्व में आया और आज आर्य हिन्दुओं का अन्य प्रमुख पर्वों के समान यह प्रमुख पर्व बन गया है। प्रस्तुत वेद मन्त्र में कहा गया है कि भाई भाई के साथ कभी द्वेष न करे। बहिन बहिन से कभी द्वेष न करे। बहिन और भाई भी परस्पर कभी द्वेष न करें। सभी भाई और बहिन परस्पर प्रेम आदि की उच्च भावनाओं से युक्त तथा समान गुण-कर्म-स्वभाव वाले होकर मंगलकारक रीति से एक-दूसरे के साथ सुखदायक वाणी को बोला करें। इस वेदमन्त्र में भाई और बहिन के संबंधों को लक्ष्य में रखकर शिक्षा देते हुए उन्हें परस्पर प्रेम आदि गुणों से युक्त होकर मंगलकारी रीति से सुखदायक वाणी में एक दूसरे से व्यवहार करने की शिक्षा दी गई है। भाईदूज पर्व को बहिन व भाई के बीच प्रेम आदि गुणों से युक्त मंगलकारी रीति से सुखदायक वाणी बोलने व अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में एक दूसरे के हितों की रक्षा व सहायता करने का संकल्प लेने का पर्व वा दिवस कह सकते हैं। इसकी अभिव्यक्ति बहिन द्वारा भाई का बाह्याचार तिलक व मिष्टान्न कराकर व भाई द्वारा बहिन को भौतिक द्रव्य व धन सहित मौखिक वचन देकर की जाती है।

मनुष्य जीवन के कई पड़ाव होते हैं। बहिन का विवाह होने पर भाई व बहिन में स्थान की दूरी हो जाया करती है। ऐसी स्थिति में इस पर्व को मनाने से कुछ समय के लिए परस्पर प्रेम व सुखदायक वातावरण का सृजन होता है। दोनों एक दूसरे के सुख व दुख बांट व साझा कर सकते हैं व यदि किसी को कोई दुःख है तो उसे दूर करने के उपाय सुखी पक्ष द्वारा किये जा सकते हैं। आज का समाज आधुनिक समाज है। अनेक परिस्थितियों में बहिनें भाई से अधिक बुद्धिमान, शिक्षित, योग्य व धन-सम्पत्तिवान होती हैं। वह दोनों एक दूसरे की परिस्थितियों के अनुसार सहयोग व सहायता करते हैं। यह एक ऐसा पर्व है जो इन्हें जीवन के अन्तिम समय तक एक दूसरे से जोड़ कर रखता है। इस पर्व को मनाने में लाभ ही लाभ दिखाई देते हैं। इस पर्व को मनाने से हानि किसी प्रकार की कुछ नहीं होती। अतः इसे वैदिक पर्व कहा जा सकता है। इस पर्व में बाह्याचार भाई-बहिन की भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए ही किया जाता है जिससे आपसी संबंध सुदृण होते हैं।

आजकल मनुष्यों का परस्पर व्यवहार वैदिक व्यवस्थाओं के अनुरूप प्रेम व सद्भावपूर्ण सर्वत्र नहीं रहा है। अनेक विषयों को लेकर परस्पर विवाद हो जाते हैं जिससे आपस में कलह होकर दूरी बढ़कर मधुर संबंध कटु संबंधों में भी बदल जाते हैं। अतः इस दिन मन में विचार व चिन्तन कर स्वयं के व्यवहार को वैदिक शिक्षाओं व मूल्यों के अनुसार बनाना भी समुचित प्रतीत होता है। जो मनुष्य जीवन में बुराईयों को छोड़कर अच्छाईयों को नहीं अपनाते, उनके जीवन में उन्नति पर पूर्ण विराम लग जाता है। वेदमन्त्रसूक्ति दुरितानि परासुव यद् भद्रं तन्नासुव।’ में अभद्र वा बुराईयों को छोड़ने तथा भद्र अर्थात् अच्छाईयों को अपनाने की शिक्षा व प्रेरणा दी गई है। यह मन्त्र सत्य को ग्रहण करने और असत्य को छोड़ने की शिक्षा देता है जो सभी प्रकार की उन्नतियों का मूल है। अतः इस भावना के अनुरुप परिवार के सभी सदस्यों के मध्य व्यवहार होना चाहिये।

पाश्चात्य संस्कृति में व्यक्तियों के समूह को लेडीज एण्ड जेंटिलमैन कहकर सम्बोधित करने की परम्परा है जबकि वैदिक भारतीय परम्परा में बहिनों, भाईयों एवं मित्रों आदि कहकर सम्बोधन की परम्परा है।  इससे यह सन्देश मिलता है कि हमें वेद के सन्देश के अनुसार कि भाई-बहिनों परस्पर द्वेष न होकर प्रेम व मैत्री हो, इसी प्रेरणा का विस्तार पूरे समाज में करें व करायें। यदि इस वैदिक सन्देश का सर्वत्र प्रचार व प्रसार हो और यह मूर्त रूप ले सके तो इससे धरती को स्वर्ग बनाया जा सकता है। इसके प्रचलित होने पर समाज में परस्पर विवाद कम होंगे और सभी समस्याओं व विवादों को सदभावपूर्वक हल किया जा सकता है। सब व्याक्तियों के प्रति भाई, बहिन और मित्र का भाव होने पर संसार में मनुष्यों के बीच की अनेक समस्याओं को दूर किया जा सकता है।

जब दो व्यक्तियों परस्पर प्रेम व मित्रता होती है तो वह दूर रहकर भी एक दूसरे के प्रति शुभकामनायें व ईश्वर से प्रार्थनायें करते रहते हैं। इसका प्रभाव भी पड़ता है। वेद मन्त्रों व इतर संस्कृत श्लोकों आदि में ऐसी अनेक प्रार्थनायें है जो अपने व दूसरों के सुख व शान्ति के लिए की जाती हैं। सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भागभवेत्।’ भी ऐसी ही एक प्रार्थना है। इस श्लोक में एक श्रेष्ठ प्रार्थना की गई है जिसके अनुसार मनुष्य समाज को श्रेष्ठ समाज बनकर समस्त सृष्टि को स्वर्ग का धाम बनाया जा सकता है। तैत्तिरीय आरण्यक में एक प्रसिद्ध प्रार्थना ओ३म् सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्य्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै।। ओ३म् शान्तिः शान्तिः शान्तिः।।’ इस मन्त्र में अपने व दूसरां सभी के लिए प्रार्थना करते हुए कहा गया है हे सर्वशक्तिमन् ईश्वर ! आपकी कृपा, रक्षा और सहाय से हम लोग परस्पर एक दूसरे की रक्षा करें, हम सब लोग परमप्रीति से मिल के सबसे उत्तम ऐश्वर्य अर्थात् चक्रवर्त्तिराज्य आदि सामग्री से आनन्द को आपके अनुग्रह से सदा भोगें, हे कृपानिधे ! आपके सहाय से हम लोग एक दूसरे के सामर्थ्य को पुरुसार्थ से सदा बढ़ाते रहें और हे प्रकाशमय सब विद्या के देने वाले परमेश्वर ! आपके सामर्थ्य से ही हम लोगों का पढ़ा और पढ़ाया सब संसार में प्रकाश को प्राप्त हो, संसार को लाभान्वित करे और हमारी विद्या सदा बढ़ती रहे। हे प्रीति के उत्पादक ! आप ऐसी कृपा कीजिये कि जिससे हम लोग परस्पर विरोध कभी करें, किन्तु एकदूसरे के मित्र होके सदा व्यवहार करें। हे भगवन् ! आपकी करुणा से हम लोगों के तीन तापएकआध्यात्मिक’ जो कि ज्वरादि रोगों से शरीर में पीड़ा होती है, दूसराअधिभौतिक’ जो दूसरे प्राणियों से होता है, और तीसराआधिदैविक’ जो कि मन और इन्द्रियों के विकार, अशुद्धि और चंचलता से क्लेश होता है, इन तीनों तापों को आप शान्त अर्थात् निवारण कर दीजिये जिससे हम लोग सुख से वेदों की शिक्षाओं का जनजन में प्रचार कर सब मनुष्यों का उपकार करें। यही आपसे चाहते हैं, सो कृपा करके हम लोगों को सब दिनों के लिए सहाय कीजिये।’ यह व ऐसी परस्पर हित की प्रार्थनायें भाईदूज व अन्य अवसरों पर करने से मनुष्य की पात्रता व योग्यता के अनुसार ईश्वर उन्हें पूरी अवश्य करते हैं। अतः भाई दूज के पर्व में बहिन व भाई की एक दूसरे के प्रति सद्भावना एवं एक-दूसरे के सुख व शान्ति के लिए की गई कामनायें व प्रार्थनाओं का अनुकूल प्रभाव अवश्य होता हैं।

लेख का अधिक विस्तार न कर हम आज भाईदूज के पर्व पर अपनी शुभकामनायें देते हैं। ईश्वर कृपा करें कि देश के लोगों में परस्पर सदभावों की वृद्धि और बुरे भावों वा कुविचारों का नाश हो। इति ओ३म् शम्।

मनमोहन कुमार आर्य