लघुकथा

पर उपदेश कुशल बहुतेरे

पंडित रामलाल मिश्र एक समाजसेवक हैं । अपने नजदीकी लोगों में पंडितजी ‘मिसिरजी ‘ के उपनाम से मशहूर हैं । उम्र लगभग पचास साल । शहर में एक गल्ले की दुकान है जिस पर अब उनके दोनों पुत्र ही बैठते हैं ।

मिसिरजी अब लगभग सेवानिवृत जीवन जी रहे थे सो समाज कार्य में रूचि लेने लगे । शहर में दुकान होने की वजह से उनको पहचानने वालों की संख्या भी अधिक थी । प्रतिष्ठित व्यवसायी की उनकी छवि भी उनके लिए मददगार थी ।

दहेज़ विरोध पे सेमिनार हो या स्वच्छता अभियान को समर्थन देने के लिए सम्मलेन उन्हें मोहल्ले के सभी महत्वपूर्ण समारोहों व सभाओं में बुलाया जाने लगा ।

मिसिरजी के ओजपूर्ण भाषण से पूरा सभागृह तालियों की गडगडाहट से गूंज उठता ।

मिसिरजी के दहेज़ विरोधी ‘ महिला सम्मान ‘ स्वच्छता अभियान ‘ बेटी बचाओ बेटी बढाओ जैसे अभियानों के समर्थन में क्रन्तिकारी विचार उनकी लोकप्रियता में चार चाँद लगा रहे थे ।

एक दिन मिसिरजी के घर के बाहर एक चमचमाती कार देखकर उन्हें बधाई देते हुए मैंने पूछ ही लिया ” मिसिर जी ! कार तो बहुत बढ़िया है । कितने में खरीदी ? ”

मिसिरजी ने मुस्कान बिखेरते हुए बताया ” अब वो क्या है न भाईसाहब ! मैं लेना तो नहीं चाहता था लेकिन हमारे समधीजी नाराज होने लगे और फिर उपहार लेने में कोई बुराई नहीं है । यही सोचकर हमने सुरेश के ससुर का यह तोहफा स्वीकार कर लिया । कार अच्छी है न ? ”

” अच्छी है !” कहकर मैं अपने काम से चला गया ।

बाद में पता चला गृहस्थी के सारे साजो सामान के अलावा सुरेश के ससुर जी ने पांच लाख रुपये नकद मिसिरजी को विवाह से पहले ही दे दिए थे ।

कुछ ही दिनों बाद मिसिरजी के पुत्र सुरेश की शादी थी । मोहल्ले का ही होने के साथ मिसिरजी से निकटता होने के कारण इस शादी में सम्मिलित होने का सौभाग्य मुझे भी मील गया ।

आलिशान आरामदायक बसों से बारात दुल्हन के गृहनगर पहुंची । दुल्हन के घर से कुछ पहले ही चमचमाता रथ और उसके आगे वर्दी में सजे बैंड बाजे वाले तैयार खड़े थे ।

कुछ ही देर में दुल्हे के रथ में बैठने के साथ ही बाजेवालों ने बाजा बजाना शुरू कर दिया । बाजेवालों के आगे झुमते नाचते बाराती चलने लगे ।
आतिशबाजियों की झड़ी लग गयी ।

बारातियों में ही नाचते गाते मिसिरजी के छोटे सुपुत्र रमेश ने पचास के नोटों की गड्डी निकाली और लहराते हुए पूरी गड्डी हवा में उड़ा दिया । कुछ स्थानीय लोग पैसे लुटने में लग गए । थोड़ी देर बाद ही दूसरी और फिर तीसरी गड्डी …

बैंड बाजे के उस भारी शोरगुल में भी मुझे मिसिरजी के क्रन्तिकारी भाषण के कुछ अंश कानों में बजते से लगे ………. दहेज़ लेना भी उतना ही बड़ा गुनाह है जितना दहेज़ देना ……झूठी शानो शौकत और फिजूलखर्ची से बचना चाहिए ………स्वच्छता और पर्यावरण का हमेशा ख्याल रखना चाहिए …

बारात गुजर जाने के बाद सड़क पर पड़े पटाखों के कागज़ के टुकडे और हवा में घुलती बारूद की गंध और धुंवा मुझे मुंह चिढाते से लगे । और मैं सब कुछ भूल कर बारात के साथ ही कदमताल करने लगा ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।