सियासत लाशों पर
मौंतो पर कविता गढ रहा।
कहे प्रदीप क्या माजरा,
लाशों पे सियासत बढ़ रहा।।
सेना सीमा पर लड़ती है,
दिल्ली में सियासत बढ़ती है।
सैनिक सीमा पर मर जाए,
नेता सोए ही रहते हैं।।
लाशों पर लाश गिरे चाहे,
रक्षक की गर्दन रेती जाए।
चुप रहते हैं तब भी द्रोही,
जब – जब आतंकी हर्षाए।।
जगे नींद से, टूटी चुप्पी,
कायर के विष पी जानें पर।
दौड़ा कर आतंकी ठुके जब,
पाक में घुस कर मारने पर ।।
सीमा पर सैनिक मरता,
वो कीड़ा मकोड़ा लगता।
विष ग्रहण किया जो स्वार्थी,
वो महापुरुष है दिखता ।।
किसी शहीद के घर जाकर,
आँसू ये पोंछ नहीं पाए ।
मतलब के मारे महाचोर,
घड़ियाल अंश के है जाए।।
मैं प्रदीप ये कहता हूँ,
पीड़ा से कटु शब्द भूल गया ।
वरना इस छलनी छाती से,
अंगार बहाना चाहा था।।
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।।प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदी कला सुलतानपुर
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