उपन्यास अंश

आजादी भाग –४

राहुल कुर्सी पर बैठे बैठे ही सो गया था । पता नहीं कितनी देर तक वह ऐसे ही सोया रहा । अभी वह नींद में ही था कि तभी उसे ठण्ड का अहसास हुआ और कुर्सी पर बैठे बैठे ही उसने पैर ऊपर करके खुदको और सिकोड़ लिया और फिर से सोने का प्रयत्न करने लगा । लेकिन ठण्ड के मारे उसकी नींद उचट गयी थी । बड़ी देर तक वह वैसे ही पड़े पड़े सोने का प्रयत्न करता रहा लेकिन कामयाब नहीं हुआ । नींद उचटने की वजह से उसे रोना आ रहा था । उसके जेहन में कौंध गया अपना बिस्तर और अपना कमरा । कभी कभी किसी कार्यवश जब उसकी माँ उसे समय से कुछ पहले जगा देती तो वह कैसे रो रो कर पुरा घर अपने सीर पर उठा लेता था । उसे रोता देखकर माँ परेशान हो जाती थी । उसे समझाती थी चुप कराती थी । सारी बातें एक एक कर उसे याद आ रही थीं । लेकिन इस समय वह खुद को बड़ा ही बेबस समझ रहा था । यहाँ कौन था जो उसे चुप कराता बिचारा रो भी नहीं सकता था ।
ठण्ड धीरे धीरे बढ़ती ही जा रही थी । ठण्ड से कंपकपाते राहुल की नजर थोड़ी दुर पर आग ताप रहे कुछ लोगों पर पड़ी । वह उठ खड़ा हुआ और उस तरफ चल पड़ा । वो तीन लोग थे । तीनों की उम्र भी लगभग सोलह सत्रह साल की ही रही होगी और आग तापते हुए आपस में खुसर फुसर भी कर रहे थे । राहुल को आते देख तीनों खामोश हो गए । राहुल को समझते देर नहीं लगी कि तीनों बच्चे चोर ही थे । उनमें से एक ने राहुल से पूछा ” तु कौन है बे ? और यहाँ क्या कर रहा है ? ”
” भाई ! मैं अपनी माँ का साथ छूटने से भटक गया हूँ और अपने घर जाना चाहता हूँ । ” राहुल ने सफ़ेद झूठ बोला ।
” तो गया क्यों नहीं ? माँ तुझे ढूंढ कर थक कर घर पहुँच गयी होगी और तु अभी तक इधर ही भटक रहा है । ” दुसरे लडके ने अपना ज्ञान दर्शाया था ।
” भाई ! यही तो मेरी मुश्किल है कि घर कैसे जाऊं मुझे पता ही नहीं है कि मेरा घर कहाँ है और गाँव का क्या नाम है ? ” राहुल ने एक और झूठ बोला ।
” हैं ! इतना बड़ा घोडा हो गया और तुझे अपने गाँव का ही नाम नहीं मालुम ? अब क्या करेगा ? ”
तीसरे लडके ने आश्चर्य व्यक्त किया था ।
” अभी फ़िलहाल तो यहीं इसी ढाबे पर रुका हुं । अब आगे क्या होगा देखते हैं । ” राहुल ने आगे की अपनी योजना बता दी ।
” अरे वो ढाबेवाला ! एक नंबर का कमीना इंसान है । जब तक तू मुफ्त में काम करेगा तब तक तो ठीक है लेकिन जैसे ही तुने अपना हक़ माँगा कि उसका कमीनापन शुरू हो जाता है । देख इसे ! ये सोहन है । ये भी पहले इसी ढाबे पर काम करता था । एक दिन इसके हाथों से छूटकर चाय का एक प्लेट टुट गया था । मार मार कर इसे अधमरा कर दिया था । इस बिचारे ने उसके हाथ पाँव जोड़े इतना भी कहा पैसे उसके हिसाब से काट ले । पैसे का नाम लेते ही और मारने लगा था ‘ पैसे ? कैसे पैसे ? क्या तेरे बाप ने कमा कर रखे हैं पैसे ?’
बाद में इसे काम पर से भगा भी दिया था और दो महीने का हिसाब भी नहीं दिया था । ” वह लड़का जिसका नाम विजय था बोलते बोलते आवेश में आ गया था ।
” विजय भाई ! तुम फिकर न करो ! इसका तो मैं ऐसा नुकसान करूँगा जिसकी भरपाई वो जिंदगी भर नहीं कर पायेगा । अपनी पिटाई मैं भुला नहीं हूँ । मुझे तो बस मौके का इंतजार है । ” सोहन ने भी अपने दिल की भड़ास नीकाल ली थी ।
” अच्छा हुआ भाइयों आप लोगों ने मुझे बता दिया । कल से क्या अभी से ही मैं इस ढाबे पर से हट जाता हूँ । लेकिन मेरी चिंता भी तो यही है न कि मैं करूँगा क्या और खाऊंगा क्या और रहूँगा कहाँ ? ” राहुल ने कहा था ।
” उसकी चिंता तु मत कर । हम हैं न ! बस एक काम कर । कल तु दिनभर कहीं बगीचे वगैरह में सो लेना । तेरी नींद पुरी हो जाएगी । कल से तु भी आ जाना हमारे साथ काम पे । अभी तीन बज रहे हैं । कल रात एक बजे हम लोग यहीं आयेंगे । अगर हमारे साथ काम करना चाहता है तो कल रात एक बजे आकर हमसे मील लेना । हम लोग जो भी कमाएंगे उसमे तेरा भी हिस्सा लगा देंगे । ठीक है ? ” सोहन ने उसे समझते हुए उसे दिलासा भी दिया था ।
राहुल ने तपाक से पूछ लिया ” लेकिन भाइयों ! आप लोग करते क्या हो ? ”
” चोरी ! ” सोहन ने बड़ी सहजता से जवाब दिया ।
राहुल इतनी आसानी से चोरी की स्वीकारोक्ति सुनकर दंग रह गया था । लेकिन अभी तुरंत ही कहाँ कुछ करना है । कल तक का समय काफी है । कल का कल देखेंगे । अभी हाँ कहना ही ठीक है । राहुल ने सोहन से कहा ” ठीक है भाइयों ! अगर कल मैं अपने घर नहीं चला गया तो ठीक रात एक बजे यहीं आकर तुम सब से मिलुंगा । ठीक है ? ”
अब तक आग तापते हुए राहुल की ठंडी काफी कम हो चुकी थी ।
तभी दुर कहीं से पुलीस के गाड़ी के तेज सायरन की आवाज सुनाई पड़ी । पलक झपकते ही तीनों लडके वहाँ से गायब हो गए ।
राहुल भी तेज कदमों से चलते हुए आकर अपनी कुर्सी पर बैठकर सोने का अभिनय करने लगा । सायरन की आवाज सुनकर ही उसके ह्रदय की धड़कनें तेज हो गयी थीं ।
कुछ ही मिनटों में पुलिस की गाड़ी सायरन के जरिये शोर मचाती हुयी उसके सामने से गुजर गयी । उसके जाने के बाद राहुल ने गहरी सांस ली थी जैसे कोई बहुत बड़ी मुसीबत टल गयी हो ।
अब नींद उसकी आँखों से कोसों दुर थी । नींद लगने की आस में वह काफी देर तक यूँही कुर्सी पर बैठा रहा लेकिन सोने में सफल न हो सका ।
अब भोर का वक्त हो चला था । अभी रात का अँधेरा छंटा भी नहीं था कि इक्कादुक्का लोगों की आवाजाही शुरू हो गयी थी ।
कुछ लोग भोर में जानेवाली गाड़ी पकड़ने के लिए रेलवे स्टेशन की तरफ जा रहे थे तो सड़क पर अपनी अपनी सायकिलों पर दूध की केतलियाँ लटकाए दूधवाले भी लोगों को दूध देने के अपने काम पर निकल चुके थे । चाय और नाश्ते की दुकानें खुलनी शुरू हो गयी थीं ।
राहुल जहाँ बैठा था वहाँ से पूर्व का हिस्सा काफी स्पष्ट दिख रहा था । पूरब में अब भोर की लालिमा फ़ैल चुकी थी । बस अब किसी भी क्षण पौ फटने ही वाली थी । सूर्य रश्मियाँ सूर्य के बंधन से छिटककर धरती के घनघोर अँधेरे का सर्वनाश करने को आतुर थीं । राहुल अपने जीवन में सर्वप्रथम सूर्योदय का यह मनोरम दृश्य देखनेवाला था और मन ही मन बड़ा उत्सुक था यह दृश्य देखने के लिए कि तभी भोजनालय का मालीक मोटर साइकिल से आ गया ।
ढाबे में बाहर की तरफ सोये हुए लड़कों को पैरों से ही ठोकर मारते हुए उसने दुकान का शटर खोल दिया ।
क़ुल चार लडके थे जो दुकान के बाहरी हिस्से में सोये हुए थे और उनके पीछे के हिस्से में दुकान का शटर था । शायद पुरी दुकान ही शटर के बाहर अनधिकृत कब्ज़ा की हुयी थी । सभी लडके तुरंत ही उठ खड़े हुए थे सिवाय एक लडके के । तीनों ने अपने अपने बिछौने तह करके रख दिए और अपने काम में जुट गए । तभी अन्दर से आते हुए मालीक की नजर उस सोये हुए लडके पर पड़ी । फिर क्या था पास ही पड़े डंडे चार पांच डंडे फटाफट उस सोये हुए लडके को रसीद कर दिया और अनाप शनाप गलियां बकने लगा । उसका यह रौद्र रूप देखकर राहुल की तो घिग्घी ही बंध गयी । उसे उन तीनों लड़कों की कही बात कानों में गूंजती सी प्रतीत हुयी । सच ही तो कहा था उन तीनों चोरों ने । अब उसकी सूर्योदय का दृश्य देखने की उत्सुकता ठंडी पड़ चुकी थी ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।