लचर प्रबंधन के भंवर जाल में फंसा एक सही फैसला
विगत दिनों देश के प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी ने काला धन पर प्रहार हेतु नोटबंदी का फैसला लिया तो यह न सिर्फ साहसिक अपितु एक ऐतिहासिक कदम था । प्रधानमंत्री ने देश की जनता से 50 दिन मांगा तो देश का अधिक्तर नागरिक इस फैसले के साथ खड़ा नजर आया । इस बीच आम नागरिकों की परेशानी और काला धन पर लगाम के तहत प्रधानमंत्री हर दिन इस मुद्दे का मंथन करते हुए लगातार नियमावली में बदलाव करते रहे । जिसका कुछ हद तक फायदा भी हुआ । इस फैसले से काला धन संग्रह करने वाले कुछ नकाबपोश चेहरे उजागर तो हो रहे है लेकिन आम आदमी की भी परेशानी कम होती नहीं नजर आ रही है ।
तकरीबन तीस दिन से अधिक हो चुके इस फैसले को और प्रधानमंत्री जी द्वारा मांगे गए दिनों में अब कुछ ही दिन शेष है लेकिन अगर इस फैसले से होने वाले देशहित को छोड़ अगर सिर्फ इसके कार्यान्वयन पर चर्चा करे तो हालत बद से बद्तर होती जा रही है । नोटबंदी के शुरू के दिनों जहाँ कुछ एक एक टी एम पर कम से कम हर दिन 2000 रू का एक नोट आसानी से मिल रहा था। वैसे अधिक्तर ए टी एम पर भी नो कैश की सूचना ने आम जनजीवन को मुश्किल में डाल दिया है । शहर में जहाँ लोग डेविट कार्ड और क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करते है उनकी हालत शायद भले ही नियंत्रण में हो लेकिन ग्रामीण इलाके में जहाँ लोग अधिक पढे लिखे नहीं है । उनका अधिक्तर खर्च कैश के रूप में होता है । उनकी मुश्किले बहुत बढ गई है । नोट की किल्लत के कारण अपने बैंक में रूपए होने के बावजूद आम आदमी रूपए की निकासी नहीं कर पा रहा है या निकासी में बहुत मुश्किल का सामना कर रहा है । चूकि रूपया बहुत मुश्किल से एक टी एम से प्राप्त हो पा रहा है इसलिए आम नागरिक ने अपने खर्च को आवश्यक जरूरतों तक ही सीमित कर रखा है जिससे जो कैश निकल रहा है उसका रोटेशन होना बंद हो गया है । रूपए ए टी एम से निकलकर घर में जमा तो हो रहे किन्तु बाजार में नहीं जा पाए रहे जिससे बाजार में भी मंदी का माहौल है । इस मंदी के शिकार निसंदेह खुदरा विक्रेता और छोटे छोटे फल , सब्जी बेचने वाले लोग हो रहे है । जिन लोगो के खाता में 2000 रूपए से कम है वो खाता में रूपये रहने के बावजूद उसकी निकासी नहीं कर पा रहे हे क्योकि अधिक्तर ए टी एम में अब भी सिर्फ 2000 रूपए के नोट ही उपलब्ध है । सरकार अब तक सभी एक टी एम में 500 रूपए का नोट पहुंचाने में नाकाम रही है । जो लोग 2000 रूपए का नोट ए टी एम से निकाल भी पा रहे है उन्हें भी उसे खुदरा करवाने हेतु दर दर भटकना पड़ रहा है क्योंकि 2000 रूपए के बाद जो दूसरा सबसे बड़ा नोट उपलब्ध है वो है 100 रूपए, जिसकी संख्या कम है और उपलब्ध होने के बावजूद हर इंसान उसे अपनी जरूरत हेतु बचा कर रखना चाहता है ।
इस संदर्भ में पीछले दिनों उच्चतम न्यायालय द्वारा सरकार से पूछा गया सवाल भी इसके कार्यान्वयन पर प्रश्न चिन्ह खड़े करता है । पीछले दिनों सरकार ने यह तय किया कि आम आदमी एक दिन में बैंक में अपने खाता से 24000 रूपए की निकासी कर सकता है । जो एक स्वागत योग्य फैसला था क्योकि नये महीने के साथ हर घर में कुछ खर्च ऐसे होते है जिसे कैश में ही भुगतान करना होता है जैसे उदाहरण के तौर पर अखबार , दूध, काम करने वाली बाई , ट्यूशन फीस , किराया या घर का समान इत्यादि, आम तौर पर ये वो जरूरते है जिसका भुगतान हमे व्यावहारिक तौर पर देखे तो कैश में ही करना पड़ता है लेकिन केन्द्र सरकार के घोषित निर्णय के बावजूद अधिक्तर बैंक अपने खाता धारकों को एक बार में 24000 रूपए या तो देने में असक्षम है या किसी कारण बस नहीं दे पाए रहे हो । एक दिन में 24000 रूपए के निकासी के निर्णय के बावजूद बैंक इतने रूपए दो या तीन किस्तों में भुगतान कर रहा है । जिससे नये महीने के साथ मुश्किल और बढ गई है ।
आम जनता के इन मुश्किलों का मुख्य कारण जो अब तक समझ आता है वो है , फैसला लेने से पूर्व तैयारी का मुकम्मल न होना या फिर प्रबंधन का सुस्त होना ।
रिजर्व बैक के गवर्नर उर्जित पटेल के अनुसार 8 नवम्बर से दिसंबर के प्रथम सप्ताह तक तकरीबन 4 लाख करोड़ रूपए के नये नोट जारी किए गए है जबकि 1000 रूपए और 500 रूपए के तकरीबन 14. 5 लाख करोड़ पुराने नोट प्रचलन में थे जिसे निरस्त कर दिया गया । हलांकि उनका कहना है कि रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया तीनो सत्र में नोट छापने का काम कर रही है लेकिन आज की तारीख में ये आंकड़े अपनी कहानी खुद ही कहते है । अब भी निरस्त किए गए पुराने नोट का एक बड़े प्रतिशत के बदले नये नोट जारी नहीं किए जा सके है । यही मुख्य कारण है कि अधिक्तर ए टी एम पर नो कैश का बोर्ड टंगा है और बैंक भी एक किस्त में नियमानुसार खाता धारक को रूपए भुगतान नहीं कर पा रही है ।
जब सरकार मेट्रो, बस , और रेल टिकट खरीदने हेतु भी अब तक चल रहे पुराने 1000 और 500 रूपए नोट पर रोक लगा दी है। आम जनता की मुश्किल और बढने वाली है इससे इंकार नहीं किया जा सकता है ।
लेकिन उच्चतम न्यायालय द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में केन्द्र सरकार ने यह कहते हुए अपना पक्ष रखा है कि काला धन, डिजिटलिकरण हेतु ऐसा करना बेहद आवश्यक था । साथ साथ यह भी आश्वासन दिया है कि आने वाले 15 दिनों सब कुछ ठीक हो जाएगा । ऐसे में एक आम नागरिक के तौर पर और देशहित में सरकार को निश्चित रूप से पंद्रह दिन का समय और दिया जाना चाहिए लेकिन अब तक इस फैसले के बाद अगर कार्यान्वयन की बात करे तो वह बेहद लचर ही रहा है । अगर पंद्रह दिन के बाद भी हालात सामान्य नहीं होते तो भले ही इस फैसले से आने वाले दिनों में देश की आर्थिक नीति को संबल मिले लेकिन , ऐसा कोई भीआर्थिक सुधार आम निर्दोष आदमी के जिंदगी और मौत के शर्त पर लिया जाए उसे उचित कहना गलत होगा । ऐसे में अगर सरकार चाहती है कि उसके इस शानदार फैसला से आम नागरिक का हित हो तो सरकार को अपने वादे के अनुसार 50 दिन में सबकुछ समान्य करना ही होगा अन्यथा इस फैसले का सकारात्मक पक्ष लचर प्रबंधन के भंवर जाल में फंस कर दम तोड़ देगा ।
अमित कु.अम्बष्ट ” आमिली “