लघुकथा : खरी बात
किसी काम से एक ग्रामीण अपने विधायक के पास गया। उसने कहा, ‘ बड़ी उम्मीद लेकर आया हूं कि आप मेरा काम करा देंगे। मैं आपकी ही जाति का हूं। ‘
यह सुनना था कि विधायक महोदय फट पड़े। वे वहां बैठे लोगों को सुनाते हुए बोले, ‘ मेरे लिए क्षेत्र के सभी लोग समान हैं। जो जाति- बिरादरी की बात करता है, उससे मुझे सख्त नफरत है। आप जा सकते हैं।’
‘ चला जाऊंगा, महोदय, लेकिन एक बात कह कर।—- चुनाव के वक्त तो बिरादर ही आपके लिए भगवान थे। तब आप जाति-बिरादरी की संकीर्णता से ऊपर क्यों नहीं उठे थे ?’
उस मुंहफट की खरी बात से विधायक जी रह गए चोट खाए सांप की तरह तिलमिला कर।
– राजकुमार धर द्विवेदी