कवितासामाजिक

दुःख होता है—–


दुःख होता है——
बचपन की यादें जब धूमिल होती हैं,
हुई पराई वो टोली जो साथ चली थी।
छूट गई वो सारी दर ओ दीवारें,
जब सारे सपने हम सब के अपने होते थे।।

दुःख होता है——
दोस्त मेरा तू पक्का है जब कहते थे,
चौड़ी छाती उससे ज्यादा हम करते थे।
दे देंगे हम जान तेरे कारण यारा,
जब कभी जुदा होने की बाते करते थे।।

दुःख होता है—–
लड़ना और झगड़ना फिर बातें करना,
किसकी गलती छोड़ो यार नहीं है कहना।
रूठ गया था यार मेरे तो नींद नहीं आई,
गले मिले कसमें खाई ऐसा नहीं कभी करना।।

दुःख होता है—–
वही यार जब आज नहीं बातें करता है,
समय नहीं है कहकर जब आगे चलता है।
शुभ प्रभात सुबह कहूॅं ना पलट के बोले,
वादा करता शाम मिलेंगे फिर वो भूले।।

दुःख होता है—–
पहन लंगोटी साथ कभी दौड़ा बागों में,
डुबकी लिए तलाबों में, मिट्टी में खेलें।
बिना साथ त्योहारों में आनन्द नहीं था,
आज वही रंगरूट हमें अपना ना बोले।।
दुःख होता है—–

।। प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदी कला, सुलतानपुर
7537807761

प्रदीप कुमार तिवारी

नाम - प्रदीप कुमार तिवारी। पिता का नाम - श्री दिनेश कुमार तिवारी। माता का नाम - श्रीमती आशा देवी। जन्म स्थान - दलापुर, इलाहाबाद, उत्तर-प्रदेश। शिक्षा - संस्कृत से एम ए। विवाह- 10 जून 2015 में "दीपशिखा से मूल निवासी - करौंदी कला, शुकुलपुर, कादीपुर, सुलतानपुर, उत्तर-प्रदेश। इलाहाबाद मे जन्म हुआ, प्रारम्भिक जीवन नानी के साथ बीता, दसवीं से अपने घर करौंदी कला आ गया, पण्डित श्रीपति मिश्रा महाविद्यालय से स्नातक और संत तुलसीदास महाविद्यालय बरवारीपुर से स्नत्कोतर की शिक्षा प्राप्त की, बचपन से ही साहित्य के प्रति विशेष लगव रहा है। समाज के सभी पहलू पर लिखने की बराबर कोशिस की है। पर देश प्रेम मेरा प्रिय विषय है मैं बेधड़क अपने विचार व्यक्त करता हूं- *शब्द संचयन मेरा पीड़ादायक होगा, पर सुनो सत्य का ही परिचायक होगा।।* और भ्रष्टाचार पर भी अपने विचार साझा करता हूं- *मैं शब्दों से अंगार उड़ाने निकला हूं, जन जन में एहसास जगाने निकला हूं। लूटने वालों को हम उठा-उठा कर पटकें, कर सकते सब ऐसा विश्वास जगाने निकला हूं।।* दो साझा पुस्तके जिसमे से एक "काव्य अंकुर" दूसरी "शुभमस्तु-5" प्रकाशित हुई हैं