लघुकथा

अनकहे रिश्ते

पहली बार उसके दिल में खूबसूरत अहसास का स्पंदन हुआ , बहुत खुश हुई कि उसे वह अपनापन महसूस हो रहा था । ख्वाबों में जिस अपनेपन की तलाश के लिए तरसती थी , जिसमें दिल को इक दूजे से कुछ न कहना पडे , उस नजर की तमन्ना थी कि जिसे देख वो बर्फ की माफिक पिघल जाये।दिल में उमर सोलह की नादानीयाॅ हिलोरें ले रही थी और वो उस रौ में खुशी से बही जा रही थी ।
फिर इक दिन बहुत कशमकश के बाद फोन कर बताने का फैसला किया लेकिन मन में अनजाना डर भी था कि कहीं इस बात से वो नाराज न हो जाए ,पर दिल के आगे किसी की चलती कहाँ हैं ,मजबूर हो फोन किया तो आवाज सुन दिल दूनी रफ्तार से धडकनें लगा।
हिम्मत कर उसके सामने दिल की बात रख दी उसका दिल जोर से धडक रहा था कि न जाने क्या सोचेगा लेकिन उसने कुछ भी जवाब नहीं दिया लेकिन अपना हालेदिल बताने के बाद वो उसका जवाब उसकी आवाज सुनने को बेताब हो उठी , फोन रखने को थी कि अचानक खामोशी टूटी और दिल को तसल्ली मिली वो बोला, ” मैं आपकी ताउम्र पसंद नापसंद की परवाह करूगा पर इस रिश्ते को कोई नाम नहीं दूंगा , साधारण शब्दों में दोस्ती का नाम भी नहीं क्यूँ की जब रिश्तों को नाम दिया जाता है तो वहां निजी स्वार्थ जनम लेते हैं जिससे बेनाम और खूबसूरत रिश्ता इक दिन खत्म हो जाता है और मुझे यह खूबसूरत रिश्ता खोना नहीं है।” यह बात सुनकर वह आंसूओं को रोक न पाई ।
जिदंगी अपने बहाव में बहने लगी , खुशी और गम के संगम में उमर के पचासवें बसंत के दिन दरवाजे पर दस्तक हुई तो आज वही खास दोस्त अपनी पत्नी के साथ आया हाथ जोडकर बोला कि,” कविता जी क्या आप मेरी बेटी की पसंद और नापसंद का ख्याल रखेंगी? मेरी बेटी को आप अपने बेटे के लिए।” —इतना सुनकर वो नम आखें लिए हाथ जोड कर बस इतना ही बोली कि,” कमल जी आज मैं यह खूबसूरत रिश्ता खोना नहीं चाहती।” आज कविता को खूबसूरत रिश्ता नहीं, रिश्ते में खूबसूरती नजर आ रही थी.
संयोगिता शर्मा

संयोगिता शर्मा

जन्म स्थान- अलीगढ (उत्तर प्रदेश) शिक्षा- राजस्थान में(हिन्दी साहित्य में एम .ए) वर्तमान में इलाहाबाद में निवास रूचि- नये और पुराने गाने सुनना, साहित्यिक कथाएं पढना और साहित्यिक शहर इलाहाबाद में रहते हुए लेखन की शुरुआत करना।