उपन्यास अंश

आजादी भाग –१९

राहुल ने ध्यान से टीपू की पूरी बात सुनी । राहुल को पूरी कहानी सुनाते सुनाते टीपू की सिसकियाँ कब थम गयीं थीं इसका पता न तो राहुल को चला और न ही टीपू इसके बारे में समझ सका । जब उसकी बात समाप्त हुयी वह सामान्य हो चुका था । मानव मन भी कितना विचित्र होता है । कई बार वह चाह कर भी कुछ बयान करने से बचता है और जैसे ही उसे कोई अपना भरोसेमंद सुननेवाला मिल जाता है वह अपने मन का पूरा गुबार शब्दों के जरिये निकाल कर बड़ी राहत महसूस करता है । ऐसी हालत में जब राहुल ने आगे बढ़कर टीपू से उसकी कहानी जाननी चाही तो उसने राहुल के सामने अपना दिल खोलकर रख दिया ।  राहुल ने उसकी कहानी सुनकर उसे धीरज बंधाया और उसे भरोसा दिलाया कि हम सब एक हैं और मौका मिलते ही यहाँ से निकलने की कोशिश करेंगे । टीपू से बातें करते हुए ही राहुल एक बार फिर नींद की आगोश में चले गया । दुसरे बच्चे पहले से ही गहरी नींद में थे । कुछ ठण्ड से ठिठुर रहे थे सोते हुए पुरा गोल होकर सिकुड़ गए थे लेकिन फिर भी सोये हुए थे । सुबह का उजाला फ़ैलने में अभी देर थी ।
बड़ी देर बाद लगभग नौ बजे का वक्त हो चला था जब राहुल की नींद खुली । ठण्ड हलकी पड़ते ही उसकी नींद गहरी हो गयी थी लेकिन अबकि उसकी नींद खुलने की वजह ठंडी नहीं थी । दरवाजे की भारी चरमराहट ने उसके नींद में व्यवधान डाला था लिहाजा वह उठकर बैठ गया ।
दरवाजा खुलते ही बाहर की रोशनी ने राहुल के आँखों में चकाचौंध पैदा कर दी । कुछ देर आँखें बंद करने के  बाद राहुल ने आँखें खोलकर देखा । आनेवाले दो दुुसरे आदमी थे । राहुल और मोहन जो कि जाग रहे थे को छोड़कर सभी सो रहे लड़कों को पीठ पर एक एक धौल जोरों की जमाकर जगा रहे थे । कई छोटे लड़कों ने नींद में ही पीठ पर धौल पड़ते ही उठने की बजाय लेटे लेटे ही रोना शुरू कर दिया था । उनके रोने से परेशान उनमें से एक ने टीपू को गले से पकड़ कर खड़ा कर दिया और सभी बच्चों को चेतावनी दी ।
टीपू का हश्र देखकर दुसरे सभी बच्चे रोना भूल कर उनकी तरफ देखने लगे ।
उन दोनों में से एक ने सभी बच्चों को कमरे में ही एक तरफ कतार में खड़े होने का आदेश दिया । सभी बच्चे एक कतार में खड़े हो गए । दुसरे ने कतार में खड़े बच्चों की गिनती करने के बाद जेब से फोन निकाल कर किसीको फोन मिलाया और बोला ” जी ! असलम भाई ! पूरे दस हैं । अब आगे क्या आदेश है ? ”
उधर से फोन में क्या कहा गया राहुल ने नहीं सुना ।
” जी ठीक है ! ” कहकर उसने फोन अपनी जेब में रख लिया था । फोन रखते हुए उसने अपने साथी को कुछ इशारा किया और वह कमरे में ही रखे एक अलमारी की तरफ बढ़ गया । अलमारी खुली हुयी ही थी । उसमें से एक बोतल जो लगभग 500 मी. ली. की रही होगी नीकालकर उसका ढक्कन खोलने लगा । राहुल ध्यान से उसकी हर हरकत को ध्यान से देख रहा था । उस आदमी ने बोतल का ढक्कन खोलकर वहीँ पड़े बडे से जग में कुछ बूंदें डालीं और उसे पानी से आधा भर दिया । दुसरे आदमी ने उसी जग में से गिलास में पानी भरकर सभी को बारी बारी से पानी पिलाया ।  पानी पिने के कुछ ही देर बाद सभी बच्चे लड़खड़ाते हुए गिरे और बेहोश हो गए ।
थोड़ी ही देर बाद एक टाटा ऐस उस कमरे के दरवाजे के सामने आकर रुकी । उन दोनों आदमियों के साथ ही उस गाड़ी के चालक ने भी मिलजुल कर सभी बच्चों को उस गाड़ी में डाला । थोड़ी बची हुयी खाली जगह में उस बड़े से हॉल में रखे हुए कुछ खाली गत्ते के खोके रखकर उन्हें रस्सी से बांध कर पीछे  का दरवाजा बंद कर दिया । अब गाड़ी को बाहर से देखने पर लग रहा था जैसे उसमें कोई गत्ते के खोके में कोई सामान कहीं ले जाया जा रहा हो । तैयारी पुरी कर वह चालक अपनी सीट पर बैठ गया और साथ ही दोनों आदमी भी आगे की सीट पर बैठ गए । उस बड़े से हॉल में एक गुप्त दरवाजा भी बना हुआ था जो सिर्फ बड़ी गाड़ियों के आने जाने के लिये ही खुलता था। उसी गुप्त दरवाजे से होकर यह गाड़ी उस हॉल से बाहर निकलकर उस बड़े से मैदान में आ गयी । थोड़ी ही देर में हिचकोले खाती गाड़ी सड़क पर आकर शहर के विपरीत दिशा में सरपट दौड़ने लगी ।
लगभग बीस किलोमीटर की दुरी तय करने के बाद वह गाडी मुख्य सड़क छोड़कर एक कच्चे रस्ते पर मुड़ गयी । लगभग पांच मिनट कच्चे रास्ते पर चलने के बाद वह गाड़ी एक बड़े से फार्म हाउस के प्रांगण में खड़ी हो गयी । इस फार्म हाउस के चारों तरफ लहलहाती हुयी खेती फैली हुयी थी । इस घर के पिछवाड़े जमीन का एक बड़ा सा टुकड़ा ऊँची चारदीवारी से घिरा हुआ था ।
उस घर के दरवाजे से बिलकुल करीब लगाकर उन तीनों ने सभी बच्चों को एक एक कर उस घर के अन्दर एक कमरे में ले जाकर लिटा दिया । सभी बच्चे अभी तक बेहोश थे । हालाँकि मोहन और राहुल जरुर कुछ कुछ चेतन सा महसूस कर रहे थे लेकिन बाक़ी सभी गहरी बेहोशी की हालत में थे । सभी बच्चों को कमरे में बंद करने के बाद मुख्य दरवाजा बंद कर दिया गया । थोड़ी देर बाद गाड़ी का इंजिन शुरू होने की आवाज आई और शनै शनै वह आवाज दूर होती गयी ।
कमरे में घने अँधेरे का साम्राज्य पसरा हुआ था । दरवाजे की झिरी में से छन कर आ रही सूर्य रश्मियों के उजाले में राहुल ने लेटे लेटे ही आँखें खोलकर कमरे का मुआयना किया । यह भी कमोबेश वैसा ही कमरा था जैसा कमरा वह छोड़ आये थे । राहुल बेहोश होने के कुछ ही देर बाद होश में आ गया था लेकिन उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह नशे में हो । वह अभी पुरी तरह सामान्य तो नहीं हुआ था लेकिन अब उसे अपनी अवस्था का भान हो रहा था । गाड़ी में अस्तव्यस्त लेटे अपने साथियों को देखकर व चलती गाड़ी का अहसास होने के बाद उसे यकीन हो गया था कि असलम भाई ने वादे के मुताबिक दस बच्चों की डिलीवरी कालू गैंग को कर दिया है । अब उनका अगला ठिकाना कालू गैंग का अड्डा ही होनेवाला था । मौके की नजाकत को देखते हुए राहुल ने खामोश रहने में ही अपनी भलाई समझी और अन्य बच्चों की तरह दम साधकर बेहोशी का अभिनय करते रहे ।
राहुल ने मोहन की तरफ देखा । वह भी अधखुली आँखों से राहुल की हरकतों को ही देख रहा था । राहुल के उठकर खड़ा होते ही वह भी उठने की कोशिश करने लगा लेकिन फिर लडखडा कर गीर पड़ा । अभी शायद बेहोशी की दवा का आंशिक असर उसके शरीर पर था जिसकी वजह से वह अभी सामान्य नहीं महसूस कर रहा था । राहुल ने इशारे से उसे खामोश रहने व लेटे रहने का इशारा किया । वह स्वयं भी कमरे में एक कोने में लेट गया । कमरा बाहर से मजबूती से बंद था । यहाँ कुछ भी प्रयास करना लगभग नामुमकिन था सो अपने आपको हालात के हवाले करके  भविष्य में मिलनेवाले किसी मौके की आस में राहुल ख़ामोशी से पड़ा रहा ।

 

क्रमशः

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।