लघुकथा

दुसरे का हक़

बाबा अवधुतानंद का शहर के बीचोबीच एक छोटा सा आश्रम था । बाबाजी भक्तों को प्रवचन दे रहे थे ” कभी किसी दुसरे का हक़ नहीं मारना चाहिए …….! ”
प्रवचन समाप्त होने के बाद बाबाजी व्यासपीठ से उतर कर अपने कक्ष में चले गए । कुछ देर बाद उन्होंने अपने सेवक को आवाज लगायी । सेवक हाजिर हुआ । बाबाजी ने उससे पुछा ” हरिया गाड़ी ठीक कराने ले गया था । क्या हुआ ? ”
सेवक ने हाथ जोड़ते हुए बताया ” बाबाजी ! हरिया गया तो था कालु मिस्त्री के पास गाड़ी ठीक कराने । लेकिन उसने गाड़ी को हाथ लगाने से भी मना कर दिया । कहने लगा पहले का ही तीन बिल बाकी है । अब और उधारी नहीं होगी । ”

(सदाचारी धर्माचार्यों से क्षमाप्रार्थी होते हुए पाखंडी बाबाओं के पोल खोल अभियान के तहत एक लघुकथा । वैसे इस किस्म के कुछ बाबा जेल की शोभा भी बढ़ा रहे हैं ।)

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।