लेख

इंग्लिश पब्ब

इंग्लैंड में रहते हुए अगर पब्ब की बात ना करें तो इंग्लैंड का सब कुछ अधूरा है। भारत में हलवाइयों की दुकानें और ढाबों के बारे में कुछ ना बोलें तो सब कुछ फीका फीका लगेगा क्योंकि खाना पीना ज़िन्दगी का एक अहम् हिस्सा है। खाने पीने के बगैर तो हम जी ही नहीं सकते और इसी खाने पीने से ही एक और रिश्ता निकलता है और वोह है, खाने पीने से ज़िन्दगी के मज़े लेने का। यह जरूरी नहीं है कि शराब पीने में ही मज़ा है, चाय काफी मठाइयाँ और स्वादिष्ट भोजनों से भी यही लुत्फ मिलता है। आज पार्टियों में, विवाह शादियों में हम तरह तरह के खान पान के मज़े लेते हैं। अपने अपने घरों में भी रोज़ाना के भोजन के इलावा, कभी कभी पकौड़े समोसे और अन्य मज़ेदार पदार्थ बनाते हैं। ऐसा खान पान हम को ख़ुशी देता है। भारत का पुराना इतिहास हम पढ़ते हैं तो उस समय भी भारत में सोम रस और सुरा जो एक किसम की शराब होती थी, का लोग सेवन करते थे। प्रसिद्ध इतिहासकार K M PANIKAR ने तो अपनी एक पुस्तक A BRIEF SURVEY OF INDIAN HISTORY में यह भी लिखा है कि उस समय भारत की अर्थवयवस्था बहुत अछि थी और मर्द औरत दोनों शराबखानों में जाते थे और सोम रस और सुरा का सेवन करते थे। अप्सराएं वहां नृत्य करती थीं। अगर हम खजुराहो के मंदिरों को देखें तो यह सोचना पड़ेगा कि जिन लोगों ने यह मूर्तियां बनाई होगी, वोह आज से कितने आगे थे। आज हम युवा लड़कियों के मुक्तसर कपड़ों को देख कर तरह तरह की बातें करते हैं लेकिन इन पुरातन मूर्तियों में उस समय की वेशभूषा का भी पता चल जाता है, जो हमें अजीब दिखाई देता है लेकिन वे लोग हम से बहुत आगे थे । खान पान और वेशभूषा से हमें अपनी पुरानी सभ्यता की जानकारी मिल जाती है। हमारा यह खान पान, पता नहीं कब से धीरे धीरे बदल कर अपने नए नए रूप को दर्शाता रहता है।
बात कर रहा था इंग्लिश पब्ब की, तो यह भी सदियों से अपने रूप बदलता हुआ अपने वर्तमान रूप में आया है। 2000 साल पहले जब रोमन लोगों ने इंग्लैंड फतह कर लिया था तो उन्होंने आते ही नई नई सड़कें और नए नए शहर बनाने शुरू कर दिए थे। उस समय रोमन लोगों का ही बोलबाला था। इंग्लैंड के लोगों से वोह काफी सभय थे। अपने साथ ही वोह इंग्लैंड में वाइन का बिज़नैस ले आये थे। उन्होंने इन नई सड़कों पर वाइन बार, वाइन शौप्स और अन्य ग्रॉसरी शौप्स बनानी शुरू कर दी थीं। इन वाइन बारों को रोमन लोग टेवरने कहते थे। उस समय इंग्लैंड के लोग भी एक किस्म की “एल” (एक किस्म की बीअर )पीते थे ,जिस को वे टिप्पल बोलते थे, इस लिए यह वाइन बार धीरे धीरे टेवर्न कहलाने लगी, जैसे आज भी इंग्लैंड के कई पब्बों के नामों के साथ टेवर्न शब्द भी लगा होता है, जैसे शैक्सपीयर टेवर्न। समय के साथ साथ इन दुकानदारों और वाइन बार मालकों ने इंग्लैंड की टिप्पल भी बेचनी शुरू कर दी थी। इन बारों में रोमन फौजी, अमीर गरीब सब अपने अपने पसंद के ड्रिंक लेते थे। समय के साथ साथ इंग्लैंड पर हमलावर और भी आये, जैसे ऐंग्लेज, सैक्सन, डेन्ज़, स्कैंडेनेवियन और वाइकिंग्ज़। इंग्लैंड की ज़िन्दगी पर इन सभी देशों का प्रभाव बहुत बड़ा, जिस के कारण इंग्लैंड में इतने वाइन बार्ज़ बन गए थे कि उस समय हर 200 शख्स के लिए एक बार होती थी। पानी से अच्छा, यह ड्रिंक माना जाता था। यह बार और एल हाउसज़ एक किस्म के सोशल सैंटर थे, जिन में बच्चे बूढे मर्द स्त्रीयां बैठ कर गप्प शप्प किया करते थे, जैसे पंजाब के गाँवों में सथ पर बैठ कर लोग बातें करते रहते हैं और पंचायत भी बैठती हैं। 970 ईसवी के करीब राजे एडगर ने इन वाइन बारों पे पाबंदियां लानी शुरू कर दी कि किसी भी गाँव या टाऊन में आबादी के लिहाज़ से कितनी वाइन बार हो सकती थीं। उस ने एक पैमाना जारी कर दिया, जिस से ज़्यादा कोई भी शख्स यह वाइन नहीं पी सकता था। ज़्यादा शराबनोशी को कंट्रोल करने का यह एक ऑर्डर था , इस पैमाने का नाम था पैग, जिस को आज सारी दुनिआं जानती है। ज़्यादा से ज़्यादा लोग कितने पैग पी सकते थे, यह तो पता नहीं लेकिन उस समय जो ज़्यादा शराब पीता था, उस को लोग हंस कर कहते थे, इस पर पैग पबंदी है।
इन वाइन बारों और एल हाउसों के साथ साथ सड़कों पर INN (सराय ) भी बन गई थीं, जिन में लोग सफर की थकावट दूर करने के लिए रह सकते थे। इस का कारण था स्टेजकोच का चलना जो एक किसम की घोड़ाबघी, जो बस सर्विस जैसी होती थी लेकिन यह स्टेजकोच एक मिनी बस जैसी होती थी, जिस में काफी सीटें होती थीं और इन को दो दो चार चार घोड़े खींचते थे । जो पैसे वाले लोग होते थे, वोह इस स्टेजकोच के अंदर बैठते थे और गरीब लोग बाहर लटकते रहते थे, जैसे भारत में कुछ लोग टैम्पू के अंदर बैठते हैं और कुछ लोग बाहर लटकते रहते हैं। जो पैसे वाले अमीर लोग अंदर बैठते थे, उन का किराया ज़्यादा होता था और बाहर वालों का कम। इसी तरह जब यह लोग INN में रात काटते थे, तो अमीरों के लिए अच्छे कमरे होते थे और गरीब लोग सादा कमरों में रहते थे। इसी तरह इन INNS में अमीरों के लिए ड्रिंक पीने के लिए खूबसूरत बार बनी होती थीं जबकि गरीबों के लिए साधाहरण। स्टेजकोच में यात्रा से और इन INNS (सराय ) में गरीबों अमीरों के फर्क के कारण ही आगे जा कर ट्रेनों बस्सों में फर्स्ट क्लास, सैकंड और यहाँ तक कि थर्ड क्लास के सफर का भी चलन शुरू हुआ। इन INNS में घोड़े भी तब्दील होते थे क्योंकि कई दफा सफर बहुत लंबा होता था। लड़ाई के वक्त इन INNS में फ़ौज के लिए भर्ती भी होती थी।
एल हाउसस, INNS और टेवर्न को लोग पब्लिक प्लेस बोलने लगे थे, जिस को आज मुख़्तसर तौर पर पब बोलते हैं। जो रवायत INNS की होती थी कि अमीर और गरीब लोगों के लिए बार इलग्ग होते थे, वोह धीरे धीरे बार रूम और स्मोक रूम में बदल गए थे क्योंकि स्मोक रूम में अमीर लोग होते थे जो सिगरेट या सिगार स्मोक करते थे। लेकिन अब यह बार रूम और स्मोक रूम हर एक के लिए खुले थे, सिर्फ स्मोक रूम में कुछ पैसे ज़्यादा देने पड़ते थे जो पंदरां बीस साल पहले सिर्फ एक पैंस ही होता था, शायद यह रवायत के कारण ही होगा, वरना एक पैंस तो कोई मायने नहीं रखता । अब तो ज़्यादा तर इन कमरों की दीवारें गिरा कर बड़े कमरे ही बना दिए गए हैं और सर्वे के मुताबिक़ आज की इस आज़ाद सोसाइटी में इंग्लैंड की हर चौथी शादी किसी न किसी पब में ही फिक्स होती है। लग पग 400 साल पहले यूरप में एक और भी इंकलाब आया था, वोह था फ्रांस में ब्रांडी का बनना, इसी तरह हौलैंड में जिन (gin) का बनना और इसी तरह स्कॉटलैंड विस्की के लिए प्रसिद्ध हो गया । यह शराबें उस वक्त बहुत सस्ती थीं और लोग यह शराबें बहुत ज़्यादा पीने लगे थे। कोई डेढ़ सौ साल पहले इंग्लैंड में इन बारों के लिए लाइसैंसिंग ऐक्ट बना और पब खोलने के लिए लाइसेंस लेना पड़ता था। बीअर शराब पर टैक्स लगने लगा। हकूमत को इस बीअर शराब से बहुत आमदनी होने लगी। आज भी हकूमत को इस से बहुत टैक्स मिलता है क्योंकि हर बीअर के ग्लास के पीछे तकरीबन आधा टैक्स ही होता है।
बीअर की इतिहासिक बात यह भी है कि पहले जितनी भी एल बनती थी, उस में हॉपस नहीं पड़ते थे। यह हॉप्स एक तरह के फूल होते हैं जिन को सुखाने के बाद, इन को बीअर में इस्तेमाल किया जाता है। इस बीअर को बनाते समय इस में तीन चीज़ें ज़्यादा होती हैं, BARLEY (जौ ), माल्ट और हॉप्स। इस में शूगर बहुत पड़ती है और इन को ब्रीऊ करने के लिए इस में यीस्ट डाली जाती है। बीअर बनाने को ब्रीऊ करना बोलते हैं, बीअर बनाने वाली फैक्ट्रीओं को ब्रीऊरी कहा जाता है और शायद इस ब्रीऊ से ही बीअर शब्द बना होगा। आज इंग्लैंड में बीअर कई किस्मों की होती है, जैसे माइल्ड, बिटर, पेल एल, स्टाउट, लागर, गिनीज़ और अन्य किस्में। जितनी किस्में इंग्लैंड में हैं, उतनी दुनिआं के किसी भी देश में नहीं हैं। भारत में सिर्फ लागर ही मिलती है जो कि इन देशों की कॉपी ही है। इंग्लैंड में आज भी पब एक सोशल सेंटर ही हैं और समय के साथ साथ पब्बों के सोशल वातावरण में पिछले पचीस तीस वर्ष से और भी बदलाव आया है। भारती पाकिस्तानी और बांग्लादेशी लोगों ने एक नया काम शुरू कर दिया है और वोह है, इन पब्बों में बारबर्कीऊ करना। कोयलों पर मीट मछी भूनते हैं और साथ में बड़े बड़े नान और चटनियों के साथ लोग बैंचों पर बैठ कर खाते हैं और साथ साथ बीअर का मज़ा लेते हैं, ताश खेलते हैं, कुछ लोग स्नूकर और कुछ लोग डार्ट खेलते हैं। आज दुनिआं के और देशों से भी लोग आ गए हैं जो अपने साथ अपने देशों के खाने भी ले कर आये हैं। बड़े बड़े टर्किश नान मिलते हैं, जो एक नई अरबी रोटी का आगमन हुआ है। अब पब उतने नहीं रहे, जितने पहले होते थे, कारण सिर्फ यह ही है कि अब बीअर के कैन आम सटोरों में बहुत सस्ते मिल जाते हैं और बहुत लोग घर में ही पी लेते हैं लेकिन वीकऐंड पर लोग पब्बों में ही जाते हैं। पब्बों का वातावरण ही आनंदमई होता है। रिलैक्स होने के लिए पब्ब एक मज़ेदार जगह है और पब्ब इंग्लैंड की एक पहचान है।