गीतिका/ग़ज़ल

जहां से उठाने तुम चली आओ

घिरे है तन्हाई में हम, बचाने तुम चली आओ
सोती यादों को जगाने तुम चली आओ

उदासी हर घड़ी रहती, तड़पती रूह मेरी है
वो सरगम पायल की सुनाने तुम चली आओ

समन्दर है यहां कितने, मगर नाकाम सारे हैं
तबस्सुम की बूंद वो, पिलाने तुम चली आओ

फिजा मदहोश करती है, नजारे जख्मीं कर देते
छुपा है ‘राज’ ईशा में बुलाने तुम चली आओ

सही दूरी नही जाती, बहते अश्क़ रातो दिन
वो जुल्फो की चादर में, सुलाने तुम चली आओ

बहुत हो गये हिज्र, अब सहना मुहाल है
जिन्दगी मुझे जहां से उठाने तुम चली आओ

राज कुमार तिवारी (राज) बाराबंकी उत्तर प्रदेश

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782