स्वर्णिम आभा
सागर के उर पर
उगते सूरज की
नैसर्गिक स्वर्णिम आभा से
जो
स्वर्णिम पटल
निर्मित होता है
वह अनुपम है
मानो
सागर के ऊपर और अंदर
मीलों तक
सुनहरी कालीन बिछा हो
या कि
अंबर के लाखों सितारे
भास्कर देवता के स्वागत में
धरा पर बिछ गए हों
अथवा
अगणित सोने के फूल खिले हों
किंवा
धरती और अम्बर के बीच
सुनहरी हिंडोला लग गया हो
जिसमें
बाल सूर्य
अत्यंत उमंगपूर्वक झूल रहा हो
कुछ ही क्षणों में
यह स्वर्णिम आभा
आभास के रूप में
परिवर्तित हो जाती है
और फिर
अनंत में विलीन हो
अनंत बन जाती है.