लघुकथा

अच्छे दिन

सुखिया एक राजनितिक पार्टी का कार्यकर्त्ता था । चुनाव के नतीजों ने उसे रोमांचित कर दिया था । एक बहुत बडा उलटफेर करते हुए उसकी पार्टी सरकार बनाने के करीब थी । उसकी ख़ुशी और उमंग को भांपते हुए रामधनी चाचा ने उसे आवाज लगायी ” सुखिया बेटा ! अब तो तुम्हारे अच्छे दिन आनेवाले हैं । तुम्हारी सरकार जो बन रही है । ”
” हाँ चाचा ! तुम्हारे मुंह में घी शक्कर ! अब वाकई सबके अच्छे दिन आने वाले हैं ! ” सुखिया ने अपनी ख़ुशी जताई थी ।
रामधनी चाचा ने उसे याद दिलाया ” आजादी के बाद से आज तक सभी नेता हर चुनाव में बिजली ‘ पानी ‘ रोजगार ‘ गरीबी जैसे विषयों पर भाषण देकर अच्छे दिन के सपने दिखाते हैं और सत्ता में आने पर वही करते हैं जो उन्हें रास आता है । अगले चुनाव में ये नेता फिर यही वादा करेंगे । ”
अबकी सुखिया के पास कोई जवाब नहीं था ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।