लघुकथा

एक नई राह

अमित भट्टाचार्य अपने घर से निकल कर नुक्कड़ पर पहुंचे और वहां एक नए रेहड़ी वाले को देखकर ठिठक गए । नुक्कड़ पर रेहड़ी पर एक नयी नाश्ते की दूकान खुल गयी थी । सुबह का समय होने की वजह से ग्राहकों की भीड़ थी । अमित जी भी घर के लिए कुछ खरीदने का मन बनाकर भीड़ कुछ कम होने का इंतजार करने लगे । तभी दो नीग्रो आये और इशारे से कुछ मांगने लगे । रेहड़ीवाला जिसका नाम सुनील था मुस्कुराते हुए उस नीग्रो से बोला  welcome sir ! what I can do for you ?
आगे सुनील और उन विदेशियों के बीच इंग्लिश में काफी बात हुयी और सुनील उनकी हर बात का इंग्लिश में बड़ी तत्परता से उत्तर देता । उसकी वाक्पटुता देखकर और उससे बात करके विदेशी भी बहुत खुश दिख रहे थे । बहुत सारी खरीददारी करके उसे कुछ अधिक पैसे देकर दोनों नीग्रो चले गए । अब भीड़ काफी कम हो गयी थी  । अमित जी ने घर के लिए दो मसाला डोसा बनाने के लिए कहकर सुनील से पुछा ” तुम तो पढ़े लिखे लगते हो । कितना पढ़े हो ? ”
सुनील ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया ” आपने सही समझा सर ! मैं कॉमर्स से स्नातक हूँ ! ”
आश्चर्य चकित अमित जी बोले ” और ये नाश्ते की रेहड़ी लगाये बैठे हो ? कोई नौकरी की कोशिश क्यों नहीं की ? ”
सुनील तवे पर से डोसा पलटते हुए बोला ” थोड़ी कोशिश तो की थी सर लेकिन एक दिन अखबार में पढ़ा ‘ चपरासी की पोस्ट के लिए सैकड़ों स्नातकों व वकीलों की अर्जी ‘
बस उसी दिन से नौकरियों की खाक छानना छोड़कर एक डोसे वाले के यहाँ नौकरी कर ली और अब यह मेरा खुद का धंदा है । सर ! कम से कम चपरासी की नौकरी से तो अच्छा ही है न ? ”
सुनील ने डोसा पकड़ाते हुए अमित की तरफ देखा । अमित को सुनील के चेहरे पर एक तेज का अहसास हो रहा था । हाथ में डोसा थामे घर की तरफ बढ़ते हुए अमित जी के मन में सुनील के लिए सम्मान का भाव जागृत हो गया था और वो सोच रहे थे ‘ काश ! हमारे देश में सभी पढ़े लिखे युवक ऐसा सोचते तो शायद काफी हद तक बेरोजगारी की समस्या हल हो जाती । ‘

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।