गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

छोटी बहर में एक कोशिश,,,,

आज मेरे संग हुई, ज़िन्दगी तरंग हुई!

ग़म भी खडे मिले, टिके नहीं जंग हुई!

फ़ाकों में भी सूकूं था, भूख मेरी मलंग हुई!

देखी अदा जो चांद की, फिर चांदनी पतंग हुई!

शब़ बडी रंगीन थी, और सहर नवरंग हुई!

देखकर खुशी तेरी जय, कायनात भी दंग हुई!

— जयकृष्ण चांडक “जय” हरदा म. प्र.

*जयकृष्ण चाँडक 'जय'

हरदा म. प्र. से