लघुकथा

फैसला

परबतिया और लाला धरमराज का झगडा पंचायत तक जा पहुंचा ।
पंचों ने फरियादी परबतिया से पुछा ” कहो ! क्या बात है ? ”
परबतिया ने लाला की तरफ उंगली दिखाते हुए कहा ” आप लोग पंच परमेश्वर हो । आप लोग न्याय करो । चोरों के डर से मैंने दो टिन देसी घी लाला के घर रखवा दिया था । लाला अब मुझे घी का टिन देने में आनाकानी कर रहे हैं । ”
लाला ने अपनी सफाई में कहा ” पंचों ! मेरे पास खुद ही दो भैंसे हैं । मेरे घर में दो टिन घी के रखे हैं लेकिन वो मेरे हैं । मैंने इससे कोई घी का टिन नहीं लिया है । यह झूठ बोल रही है । ”
सरपंच केशव ने परबतिया से पुछा ” तुमने जब लाला को घी के टिन दिए थे तब कोई आसपास था जिसकी गवाही से फैसला किया जा सके । ”
परबतिया ने इनकार में सीर हिला दिया । केशव की पेशानी पर बल पड़ गए । वह कोई फैसला नहीं कर पा रहा था । पुरा गाँव सांस रोके उसके फैसले की प्रतीक्षा कर रहा था । परबतिया अपने साफगोई और सत्यता के लिए जबकि लाला अपनी धूर्तता के लिए जाने जाते थे । लेकिन यहाँ परबतिया झूठी साबित होने जा रही थी ।
अचानक केशव की आवाज गूंज उठी ” फैसला हो गया है । अभी थोड़ी देर में फैसला सुनाया जायेगा । लेकिन उससे पहले वादी और प्रतिवादी से गुजारिश है कि दोनों अपने हाथ मुंह व पग धोकर आयें । ”
केशव के आदेश से दोनों को एक एक लोटा पानी दिया गया । परबतिया ने वहीँ सबके सामने एक लोटे के पानी से कुल्ला करते हुए मुंह धो लिया व थोड़े पानी से पग पखार कर पंचों के सामने आकर खड़ी हो गयी । उसके लोटे में अभी भी थोडा पानी बचा हुआ था ।
इधर लालाजी ने पहले पग धोना शुरू किया और हाथ भी नहीं धो पाया था कि पानी ख़त्म हो गया । उसने वहीँ खड़े एक आदमी से और पानी मांगा लेकिन केशव की रोबदार आवाज सुनकर सहम गया ” लाला ! शराफत से परबतिया का घी का टिन उसे वापस कर दो । अगर अभी भी नहीं मानोगे तो तुम्हें जुर्माना भी भरना पड़ सकता है । ”
जुर्माने की बात सुनते ही लाला हाथ जोड़ते हुए मिमियाने लगा ” पंचों ! मुझे माफ़ कर दो । मैं अभी परबतिया को उसका घी वापस कर दुंगा । लेकिन आपने कैसे जाना कि घी मैंने ही लिया है ? ”
केशव ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया ” लाला ! ईश्वर दिखाई नहीं देता लेकिन अपनी समझ से ही उसे महसूस किया जाता है । इन्सान का आचरण और उसकी आदतें सदैव ही उसके साथ ही रहती हैं और तुम्हारे आचरण ने ही तुम्हारा पोल खोल दिया । परबतिया और तुम्हें समान मात्रा में पानी मिला था । परबतिया अपनी सभी जरूरतें पूरी करके भी पानी लोटे में बचा लाई थी जबकि तुम अपनी जरुरत भी पूरी नहीं कर सके । किसी भी चीज के उपयोग में तुम्हारी और परबतिया की आदत यही रही होगी । अपने आदत के मुताबिक परबतिया ने घी बचाया रहा होगा जबकि तुम्हारे पास घी होने का सवाल ही नहीं पैदा होता । अब फैसला करना मुश्किल नहीं था कि तुम्हारे पास जो घी का टिन है वह परबतिया का ही है । ”
केशव के न्याय की प्रशंसा करते हुए सभी गाँव वाले अपने अपने घर की तरफ बढ़ने लगे ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।