गीत/नवगीत

गीत

सुन लो मेरी कलम नहीं लिख सकती झूठी बातों को
कैसे पूरनमासी लिख दूँ घोर अमावस रातों को

मेरी कलम ने अक्सर सबका कच्चा चिट्ठा खोला है
राजमहल के राज मुकुट के आगे तन कर बोला है

राज महल का भाट नहीं हूँ, ना मैं कोई चारण हूँ
जनता की शंका की बोली, कष्टों का उच्चारण हूँ

दूजों को खुश करने वाले छंद नहीं लिख पाऊंगा
वो लिक्खा तो कलम मरेगी या फिर मैं मर जाऊंगा

कब तक सहना होगा हमको अपनों की ही घातों को
कैसे पूरनमासी लिख दूँ घोर अमावस रातों को

— मनोज “मोजू”

मनोज डागा

निवासी इंदिरापुरम ,गाजियाबाद ,उ प्र, मूल निवासी , बीकानेर, राजस्थान , दिल्ली मे व्यवसाय करता हु ,व संयुक्त परिवार मे रहते हुए , दिल्ली भाजपा के संवाद प्रकोष्ठ ,का सदस्य हूँ। लिखना एक शौक के तौर पर शुरू किया है , व हिन्दुत्व व भारतीयता की अलख जगाने हेतु प्रयासरत हूँ.