गीत : ख़ुद करके दिखलाना होगा
महिलाओं की इज़्ज़त करने का, पाठ हमें पढ़ना होगा।
हर कहीं सुरक्षित हो नारी, ऐसा समाज गढ़ना होगा।
नारी कोई सामान नहीं , इन्सान हमारे जैसी है;
देकर अधिकार बराबर का, मिलजुल आगे बढ़ना होगा।
बच्ची से लेकर वृद्धा तक का, चीर-हरण कर रहे लोग।
राहों में फिरते नर पिशाच, हरदम करने को बल प्रयोग।
माँ-बेटी-बहन नहीं दिखती, दिखता है तो केवल शरीर;
सारे भारत में फैला है, जाने ये कैसा मनोरोग।
सबके घर में माँ बहनें हैं, बेटी हैं सबके आँगन में।
फिर क्यूँ कामुकता भरी सोच, लिपटी रहती है ज़ेहन में।
अपराध मार्ग पर क़दम बढ़ा देते हैं क्यूँ दूषित विचार;
फुफकार मारती रहती क्यूँ, इच्छा की नागिन तन मन में।
अपने बेटों को हमें शुरू से ही यह सिखलाना होगा।
औरत को इज़्ज़त से देखें, बचपन से समझाना होगा।
बच्चों में अच्छे संस्कार का बीजारोपण करने को;
आदर देने की आदत को, ख़ुद करके दिखलाना होगा।
— बृज राज किशोर ‘राहगीर’