कविता

दर्द….

अंतर्मन के कोने में
न जाने कितनी ही
दर्द भरी सिसकियाँ
सुबकती है खामोशी से

बचपन से लेकर ढ़लती उम्र तक
जख्मों के घाव इतने हरे
कि आज भी टीस बनकर चुभती है

कुछ घटनाएं जिंदगी में
गम के इतने सैलाब ले आती है
कि जीवन भर दर्द की कराह
बनी रहती है

एक एक कर
चाहतों की अर्थी निकल जाती है
फिर ज़िंदा इंसान भी मुर्दा सा लगता है

ऐसा रिश्ता बन जाता गमों से
हरवक्त आँखें नम रहा करती है।

*बबली सिन्हा

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