इतिहास

संतो के संत बाबूजी महाराज (भाग-१ )

आसाराम, रामपाल रामवृक्ष और अब एक नया राम राम रहीम   जहाँ चारों और ढोंगी बाबाओं की तूती बोल रही है वहीँ मुझे भी अपने गुरु शाहजहांपुर के रामचंद्र जी का नाम याद आया जो की एक उच्च कोटि के संत थे लोग उन्हें श्रद्धावश बाबूजी कहकर बुलाया करते थे संयोगवश उनके गुरु का नाम भी रामचंद्र था।  आज के ये ढोंगी जहां अपने शिष्यों के पैसो पर ऐश कर रहे हैं, वहीँ इन जैसे संत अपने स्वयं के पैसों से अपने घर आने वाले जिज्ञासुओं को खाना खिलाते थे   रात में उन्हें ठण्ड लगने पर अपनी शाल उतारकर उन्हें ओढ़ा देते थे   हजारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा उन पर लागू होता है। लोग इन्हें प्यार से बाबूजी कहकर बुलाते थे उन्होंने अपना प्रचार नहीं होने दिया, सिर्फ अपनी बात कहते थे और भला हो ईश्वर का की कोई बड़ा राजनेता उनके इस मिशन से नहीं जुडा है

उन्हें अपनी आत्मकथा के लिए बड़ी मुश्किल से मनाया जा सका उन्होंने अपने देहावसान के बाद डायरी के दुसरे भाग के प्रकाशन को कहा जिससे जीते जी उनके शिष्य यह समझें की अपने अहंकार के कारण यह ऐसा कह रहे हैं   उनका रहन सहन इतना अधिक सादा था उनके घर के पास रहने वाले पड़ोसियों तक को नहीं पता था (और आज भी नहीं पता )की उनके पड़ोस में एक इतना ऊंचा संत रहता है उनकी डायरी से यह भी पता चलता है की सृष्टि बनाने के बाद भगवान् अपनी रचना को भूला नहीं है और अभी भी उसकी नजर अपनी सृष्टि पर बनी हुई है

उनके शब्दों में साल की उम्र में मुझमें ईश्वर के प्रति प्यार की प्यास पैदा हुई १९२५ में उन्होंने शाहजहांपुर की कचहरी में रेकॉर्डकीपर की नौकरी शुरू की उन्होंने फतेहपुर के रामचद्र जी को अपना गुरु बनाया गुरु से मिलने के महीने के बाद उनका हृदय शब्द का पाठ करने लगा धीरे धीरे चेतन व् अचेतन में ईश्वर सूर्य के प्रकाश की मानिंद व्याप्त मालुम हुआ

उन्होंने डायरी लिखनी शुरू की डायरी में उन्हें लिखा की उच्च कोटि के संत सपने में आकर आध्यात्मिक जगत की अनोखी बाते बताते थे, उन्हें बहुत कुछ समझाते थे   किसी ने ब्रह्म क्या है अहम क्या है  किसी ने शरीर के चक्रों को समझाया   संतों ने स्वप्न में आकर उन्हें प्राणाहुति देनी शुरू की

कुछ वर्षों बाद उनका एक स्वप्न नवम्बर १९२९ : रात में एक स्वप्न देखा तांगे में जा रहा हूँ , रास्ता भूल गया, एक संत आये मार्गदर्शन किया मैं सही रास्ते पर आया   मैं किसी कमरे में पहुंचा जिसका दरवाजा बाहर से बंद था संत जी ने दरवाजा खो

 

ला मुझे लगा की १२ सालों के लिए मुझे एकांतवास दिया गया है   मुझे लगा मैं पांडवों में से एक हूँ   अर्जुन जंजीर में जकड़े हैं, भीम रसोई के पास बैठे हैं   अर्जुन की यह दशा देखकर मुझे बड़ा रंज हुआ क्योंकि मुझे याद नहीं मैं अपने को नकुल सहदेव में से समझता था अर्जुन को जंजीरों में जकड़ने वाले को मैंने सजा देनी चाही, पर भीम ने बताया की १२ साल के वनवास की समाप्ति में मिनट बाकी हैं  १२ साल समाप्त हुए और मैं जग गया

५नवम्बर १९२९ : दिन के १०:०० बजे मैं इक्के पर कचहरी जा रहा था, रास्ते में विचार आया की मैं ही गुरु हूँ मुझे लगा मैं सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का मालिक हूँ 

नवम्बर १९२९ : किसी व्यक्ति का ख्याल आने पर या उससे मुलाक़ात होने पर उसका चरित्र और उसके भविष्य जीवन के तमाम सुख दुःख मेरी आँखों के सामने चित्रित होने लगते हैं अगर विचार अधिक शक्ति शाली हुए तो दूसरे जन्म में उसका क्या होने वाला है इसका चित्र भी सामने आने लगता है

२५ नवम्बर १९२९ : मैं दवा लेने वैद्य के घर जा रहा था विचार आने लगा वह मैं ही था जिसने वृक्षों की उत्पत्ति की उन्हें फल देने योग्य बनाया आदि आदि यह आंनद केवल दो मिनट रहा

जनवरी १९३० : अपनेपन की भावना लुप्त हो गयी है, ईश्वर ने मिझे सब कुछ दिया है मकान जमींदारी लेकिन उनकी और मेरा लगाव बिलकुल भी नहीं है संसार एक व्यवस्थित नाट्यशाला मालुम पड़ता है लोग इसमें अपना अपना अभिनय करते मालूम पड़ते हैं, मैं उनके खेल का आनंद उठा रहा हूँ

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बाबूजी का घर शाजहांपुर                                                                बाबूजी

गुरुदेव ने १९ अप्रैल १९८३ को महासमाधि ली थी । उनकी इच्छानुसार उनकी आत्म कथा का दूसरा भाग उनके देहावसान के तीन वर्ष के बाद प्रकाशित किया गया । उनके गुरु जी का नाम भी रामचंद्र था जिन्हे शिष्य प्रेम से लालजी कहकर बुलाते थे ।

१८ मई १९४४ (सुबह १०:०० से दोपहर १२:०० के बीच) : उनके गुरु का आदेश तुम्हें संस्था का निर्माण करना है ।

१४ अक्टूबर १९४४ : भगवान् श्रीकृष्ण ने अंत:संपर्क कर मुझे बताया की महाभारत में आलोचनपूर्ण संशोधन की जरूरत है ।

१५ अक्टूबर १९४४ : भगवान् श्रीकृष्ण : ईश्वर की खोज करने वालों को मांस नहीं खाना चाहिए । मुझे राधा से अधिक प्यार किसी ने नहीं किया । उसके बाद गोपियाँ थी । रासलीला की कथा बीच  में गढ़ दी गयी हैं । गंगा नदी से भीष्म के जन्म की कथा सच्ची नहीं है । भीष्म पांड्य राज्य से आई हुई एक राजकुमारी के पुत्र थे । भीष्म से बढ़कर किसी और ने क्षत्रिय धर्म का पालन नहीं किया उनका उदाहरण केवल दशरथ पुत्र राम के बाद आता है ।

२८ अक्टूबर १९४४ : मुझे मथुरा से नैमिषारण्य जाने की आज्ञा मिली । भगवान् श्रीकृष्ण ने बताया सचमुच मैं यमुना नदी को बहुत प्यार करता था । इसके किनारों पर मैं बहुत खेला हूँ । नदी का बहाव बदलने की कोशिश करो । जो लाल मस्जिद तुम्हारी नजर में आती है उसके पास मेरा जन्म स्थान है । कंस के समय यह जेल थी । यहां मेरी माँ कैद थी । नंदगांव में एक स्थान है जहाँ एक धोबीघाट है तुम्हारे ससुर के घर के पास एक टीला है वह मेरा क्रीड़ा स्थल रहा है । कुब्जा का टीला पाट  दिया गया है ।

३० अक्टूबर १९४४ : आज सुबह १०:३५ पर मुझे भगवान् श्रीकृष्ण से लगभग ७ मिनट की प्राणाहुति मिली । मथुरा में यमुना के किनारों को ४ से ६ मील की दूरी तक आलोकित करने का मुझे आदेश मिला । वृन्दावन में भी मुझे यही काम करने का आदेश मिला ।

आज बाबूजी का मिशन रूस, फ़्रांस जर्मनी, अमरीका, ब्रिटैन, चीन, जापान, इटली, मेक्सिको , कनाडा , सहित  विश्व के १०० देशों में स्थापित हो चुका है । बाबूजी की डायरी के अन्य  दिनों जिनमें ऋषि धन्वंतरि, गौतम बुद्ध, गुरु नानक, राधाजी, चैतन्य महाप्रभु, स्वामी विवेकानंद, कबीर दास जी, हनुमान जी, शिव जी , इत्यादि से ध्यान के दौरान उनके सन्देश व् निर्देश और किस प्रकार उन्हें इनके द्वारा काम सौंपे गए और कैसे उन्होंने इसे पूरा किया का विवरण एवं अन्य आध्यात्मिक गूढ़ बातों को बताया गया है का जिक्र करूंगा ।

 

रविन्दर सूदन

शिक्षा : जबलपुर विश्वविद्यालय से एम् एस-सी । रक्षा मंत्रालय संस्थान जबलपुर में २८ वर्षों तक विभिन्न पदों पर कार्य किया । वर्तमान में रिटायर्ड जीवन जी रहा हूँ ।

7 thoughts on “संतो के संत बाबूजी महाराज (भाग-१ )

  • लीला तिवानी

    प्रिय रविंदर भाई जी, बहुत दिनों के बाद आपका बहुत सुंदर ब्लॉग आया और साथ में एक प्रेरक व्यक्तित्व को लाया. आपने अपने गुरुजी रामचंद्र उर्फ़ बाबूजी का जीवंत चित्रण किया है, हम भी उनके लिए कोटिशः नमन प्रेषित करते हैं. पहले के सभी संत ऐसे ही मन के सच्चे हुआ करते थे. उनका कहना और मानना होता था- ”कहनी और कथनी में फ़्रर्क नहीं होना चाहिए.” वे स्वयं भी ऐसा ही करते थे. अहंकार रहित होकर अहंकार छोड़ने की बात करते थे. इसलिए उनकी बातों का असर जल्दी और सकारात्मक होता था. बाबूजी भी ऐसे ही थे. उनसे परिचय करवाने, अत्यंत सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.

  • विजय कुमार सिंघल

    आदरणीय भाईसाहब, बाबूजी के बारे में जानकर बहुत प्रसन्नता हुई. मेरे कई मित्र और सम्बन्धी श्री राम चन्द्र मिशन से जुड़े हुए हैं, हालाँकि मैं नहीं जुडा. मैंने लालाजी के बारे में भी पढ़ा है. आप बाबूजी के बारे में लिख रहे हैं यह अच्छी बात है. यह जानकर मुझे परम आश्चर्य और प्रसन्नता हुई कि बाबूजी को श्री कृष्ण से भी निर्देश मिला करते थे. भीष्म और अपने बारे में कृष्ण ने जो बताया है वह सत्य है. आपको बहुत बहुत धन्यवाद.
    10 दिन पहले रविवार को मैं एक मित्र के साथ पनवेल गया था ध्यान करने. क्या आप भी वहां आते हैं?

    • रविन्दर सूदन

      आदरणीय सिंघल जी,
      जानकार अत्यंत प्रसन्नता हुई की आप को भी बाबूजी के बारे जानकारी है । आपके लेख की असली संत बहुत कम मिलते हैं पढ़कर लिखने की प्रेरणा मिली। यह अब इनके बारे और लिखने का उत्साह दुगुना हो गया है । मैं सहज मार्ग का वर्ष २००० से अभ्यासी हूँ। जबलपुर के आश्रम जाता हूँ । पहले सोचा था दो अंकों में ख़त्म कर दूंगा अब और आगे लिखने की इच्छा है । प्रोत्साहन के लिए बहुत धन्यवाद ।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    रविंदर भाई , श्री राम चन्द्र की अधिआत्मिक कथा सुनाई है, कहाँ कोई सुनता है इन के उपदेश ! आज तो रामरहीम के साथ डिस्को का ही बोल बाला है . लगता है, ज़ादा भारती लोग पागल् हो गए हैं जो मैक्दौन्ल्ड पिज़ा बर्गर खा के बुधि भृष्ट हो गई है . हमारे नेता भी वोटों की खातर इन के चरण छूते हैं, किया कहें, कहा नहीं जाता .

    • रविन्दर सूदन

      प्रिय गुरमेल भाई साहब जी,
      रवीन्द्रनाथ टैगोर की एक कविता है, मैं उसे वर्षों से ढूंढता था एक दिन पता चल गया । उसके घर के बाहर पहुंचा दिल धड़कने लगा सीढ़ियां थी ऊपर चढ़ा दरवाजे की घंटी दबाने ही वाला था की रुक गया । कहीं वो सचमुच सामने आ गया तो ? करूंगा क्या ? फायदा क्या उससे मिल कर ? विचार बदल गया, धीरे से वापस आने लगा, जूते भी हाथ में उठा किये, कहीं आवाज से आ ही न जाए नीचे उतर कर ऐसा भागा मुड़कर नहीं देखा । अब फिर से उसे खोज रहा हूँ सब जगह सिर्फ उस जगह को छोड़कर जहाँ वो रहता है । यह स्थिति है आज के लोगो की ।आपकी प्रतिक्रिया के लिए बहुत धन्यवाद ।

  • राजकुमार कांदु

    आदरणीय रविंदर भाई जी ! आज नकली बाबाओं के युग में आपने अलौकिक आभायुक्त परम गुरु श्री रामचन्द्र जी की गाथा पाठकों के समक्ष पेश की है तो ऐसा प्रतीत होता है मानो जेठ की तपती दुपहरी में रिमझिम वर्षा की बूंदों ने दस्तक दे दी हो । अध्यात्म का एक नया अध्याय शुरू करने के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन व बधाई ।

    • रविन्दर सूदन

      प्रिय राजकुमार भाई साहब जी,
      आपकी प्रतिक्रिया के लिए बहुत धन्यवाद. बाबूजी की फोटो से आपको
      अंदाजा हो गया होगा उनकी सादगी का. ऊपर गुरमेल जी को जवाब लिखा है वो हालत है
      आज के लोगों की. राम रहीम को पता था लोग क्या पसंद करते है उसने वही परोसा.

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