कविता

प्रेम…

सुनो !
दूर हूं तुमसे
ये सच है

पर फिरभी, विश्वास है
तुम जरूर
महसूस करते होंगे मुझे

हाँ ! क्योंकि
सुना है मैंने
लोगों को ये कहते हुए

प्रेम सच्चा हो तो
दो दिल जुड़ जाते हैं
और धड़कनें
आपस में
तरंगित होने लगती है

फिर !
एक रूहानी एहसास
दोनों के बीच
जज्बातों की कड़ियाँ
पिरोती है

सुनो !
मेरे हृदय में व्याप्त प्रेम
मन का संवाद
तन की इच्छा

सब तुममे
समाहित हो गई है
मैं नहीं अब खुद में

निर्जीव तन मेरा
संवेदनाओं से परे
बस एक आकार मात्र है

प्रेम जिस्म छोड़ देता है
ये बात जान चुकी हूँ मैं
जैसे चिता से उठता धुँआ
और राख में तब्दील जिस्म का सच।

*बबली सिन्हा

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