सामाजिक

जन स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़

विडंबना है कि आजादी के सात दशक बाद भी हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार नहीं हो सका है। सरकारी अस्पतालों का तो भगवान ही मालिक है ! ऐसे हालातों में निजी अस्पतालों का खुलाव तो कुकरमुत्ते की भांति सर्वत्र देखने को मिल रहा हैं। इन अस्पतालों का उद्देश्य लोगों की सेवा करना नहीं है बल्कि सेवा की आड़ में मेवा अर्जित करना है। लूट के अड्डे बन चुके इन अस्पतालों में इलाज करवाना इतना महंगा है कि मरीज को अपना घर, जमीन व खेत गिरवी रखने के बाद भी बैंक से लोन लेने की तकलीफ उठानी पडती है। अभी हाल ही में गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल का ताजा उदाहरण हमारे सामन है। जहां डेंगू पीडित सात साल की बच्ची के करीब 15 दिनों तक चले इलाज का बिल 16 लाख बताया गया। इसके बाद भी बच्ची की जान नहीं बच सकी।
सोचनीय है क्या भारत में विकास का पैमाना यह है कि एक गरीब को अपनी बेटी का इलाज करवाने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगाना पडे। अपना सबकुछ गंवाने के बाद भी बेटी के प्राण न बच सके। ऐसे में उन अभिभावकों पर क्या गुजरती होगी ? दरअसल हमारे देश का संविधान समस्त नागरिकों को जीवन की रक्षा का अधिकार देता है। लेकिन, जमीनी हकीकत बिलकुल इसके विपरीत है। हमारे देश में स्वास्थ्य सेवा की ऐसी लचर स्थिति है कि सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों की कमी व उत्तम सुविधाओं का अभाव होने के कारण मरीजों को अंतिम विकल्प के तौर निजी अस्पतालों का सहारा लेना पडता है। देश में स्वास्थ्य जैसी अतिमहत्वपूर्ण सेवाएं बिना किसी विजन व नीति के चल रही है।
ऐसे हालातों मे गरीब के लिए इलाज करवाना अपनी पहुंच से बाहर होता जा रहा हैं। महाशक्ति बनते भारत में स्वास्थ्य सेवाएं इतनी खराब है कि विश्व स्वास्थ्य सूचकांक के आंकडों में कुल 188 देशों में भारत 143वें स्थान पर है। हम स्वास्थ्य सेवाओं पर सकल घरेलू उत्पाद यानि जीडीपी को सबसे कम खर्च करने वाले देशों में शुमार है। आंकड़ों के मुताबिक भारत स्वास्थ्य सेवाओं में जीडीपी का महज 1.3 प्रतिशत खर्च करता है, जबकि ब्राजील स्वास्थ्य सेवा पर लगभग 8.3 प्रतिशत, रूस 7.1 प्रतिशत और दक्षिण अफ्रीका लगभग 8.8 प्रतिशत खर्च करता है। दक्षेस देशों में, अफगानिस्तान 8.2 प्रतिशत, मालदीव 13.7 प्रतिशत और नेपाल 5.8 प्रतिशत खर्च करता है। भारत स्वास्थ्य सेवाओं पर अपने पड़ोसी देशों चीन, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भी कम खर्च करता है। 2015-16 और 2016-17 में स्वास्थ्य बजट में 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, लेकिन मंत्रालय से जारी बजट में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के हिस्से में गिरावट आई और यह मात्र 48 प्रतिशत रहा। परिवार नियोजन में 2013-14 और 2016-17 में स्वास्थ्य मंत्रालय के कुल बजट का 2 प्रतिशत रहा। सरकार की इसी उदासीनता का फायदा निजी चिकित्सा संस्थान उठा रहे हैं। नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देशों से भी हम पीछे हैं, यह शर्म की बात है।
देश में 14 लाख डॉक्टरों की कमी है। यही कारण है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के आधार पर जहां प्रति एक हजार आबादी पर एक डॉक्टर होना चाहिए। वहां भारत में सात हजार की आबादी पर एक डॉक्टर है। दीगर, ग्रामीण इलाकों में चिकित्सकों के काम नहीं करने की अलग समस्या है। यह भी सच है कि भारत में बडी तेज गति से स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण हुआ है। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय देश में निजी अस्पतालों की संख्या 8 प्रतिशत थी, जो अब बढकर 93 प्रतिशत हो गई है। वहीं स्वास्थ्य सेवाओं में निजी निवेश 75 प्रतिशत तक बढ़ गया है। इन निजी अस्पतालों का लक्ष्य मुनाफा बटोरना रह गया है। दवा निर्माता कंपनी के साथ सांठ-गांठ करके महंगी से महंगी व कम लाभकारी दवा देकर मरीजों से पैसे ऐंठना अब इनके लिए रोज का काम बन चुका है।
यह समझ से परे है कि भारत जैसे देश में आज भी आर्थिक पिछडेपन के लोग शिकार है। वहां चिकित्सा एवं स्वास्थ्य जैसी सेवाओं को निजी हाथों में सौंपना कितना उचित है ? एक अध्ययन के अनुसार स्वास्थ्य सेवाओं के महंगे खर्च के कारण भारत में प्रतिवर्ष चार करोड लोग गरीबी रेखा से नीचे चले जाते है। रिसर्च एजेंसी अर्न्स्ट एंड यंग द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 80 फीसदी शहरी और करीब 90 फीसदी ग्रामीण नागरिक अपने सालाना घरेलू खर्च का आधे से अधिक हिस्सा स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च कर देते हैं।
इन हालातों में आवश्यकता है कि हम सरकारी अस्पतालों को दुरुस्त करे ताकि किसी को निजी अस्पतालों में अपना इलाज कराने के लिए मजबूर न होना पडे। साथ ही निजी अस्पतालों के महंगे इलाज को लेकर नकेल कसने के लिए कठोर कानूनी प्रावधान किये जाने चाहिए। भारत को स्वास्थ्य जैसी बुनियादी व जरूरतमंद सेवाओं के लिए सकल घरेलू उत्पाद की दर में बढोत्तरी करनी होगी। सरकार को निशुल्क दवाईयों के नाम केवल खानापूर्ति करने से बाज आना होगा। साथ ही यह ध्यान रखना होगा कि एंबुलेंस के अभाव में किसी मरीज को अपने प्राण नहीं गंवाने पडे। इन सबके लिए मजबूत जनबल की जरूरत है। जनता को ऐसे प्रतिनिधि को चुनना होगा जो स्वास्थ्य सेवाओं जैसी सुविधाओं को आमजन तक पहुंचाने का वायदा करे।
देवेंद्रराज सुथार
संपर्क – गांधी चौक,  आतमणावास,  बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान।  343025
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देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार , अध्ययन -कला संकाय में द्वितीय वर्ष, रचनाएं - विभिन्न हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। पता - गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। पिन कोड - 343025 मोबाईल नंबर - 8101777196 ईमेल - devendrakavi1@gmail.com