हास्य व्यंग्य

व्यंग्य – नौकरी तू इतनी हसीन क्यों है ?

लोग बड़ा भाव खाते हैं ? माना कि जो लोग भूखे हैं और जिनके पास कुछ भी खाने को नहीं हैं अगर वे भाव खाते हैं तो कोई ताज्जुब की बात नहीं हैं। क्योंकि भूखा आदमी कुछ भी कर सकता। लेकिन, हैरत की बात तो तब है जब पेट भरे रईस लोग भी सबकुछ खाने के बाद भी भाव खाना पसंद करते हैं तो बात हजम नहीं होती। लोग जितना भाव खा रहे हैं। जीवन से उतना ही भाव का अभाव होता जा रहा हैं। इसलिए आजकल लोग डूबते हुए को बचाने की बजाय उसके साथ सेल्फी लेना ज्यादा महत्वपूर्ण समझते है। लड़कियां तो बहुत भाव खाती हैं। हमारे मोहल्ले की तो बहुत ज्यादा ही भाव खाती है। उनका भाव खाने का कोटा पूरा हो, तो हम जैसे लल्लू-पंजू को भाव दे ना !
भाव खाने के लिए दुनिया में लोग जो कम थे, जो अब ये सरकारी नौकरी भी भाव खाने लगी है। हसीना की तरह तेवर दिखाने लगी है। अपनी अदा से सबको फिदा करने लगी है। कई सालों तक अक्ल की एड़ियां इसकी चौखट पर घिसाने के बाद भी ये हाथ में नहीं आती। आजकल नौकरी हसीना की तरह नखरे दिखाने लग गई है। जिसे पटाने के लिए हर युवा इसके पीछे हाथ-पैर धोकर पड़ा है। इसको बाटली में लेने के लिए तरह-तरह के जतन कर रहा है। लेकिन, फिर भी दाल नहीं गल रही है। ये भी खूबसूरत हसीना की तरह प्यार न देखकर पैसा देखती है। आखिर इसको भी तो पैसे वाला वर चाहिए ना। तभी तो यह ताउम्र खुश रह पायेंगी। गरीब और योग्य व्यक्ति की तो इसकी नजरों में कोई कद्र ही नहीं है। बस ! ये तो पैसा पैसा करती है और पैसे पर ही मरती है। यदि आप कर दे बारिश पैसे की तो हो जाये ये आपकी। यूं कहे कि पैसा फेंक तमाशा देख वाला खेल है। इसके आगे मेरिट वाले अव्वल लोग भी धूल चाटते है। ओर तो ओर बगले झांकते है। तो फिर हम जैसे लोग किस खेत की मूली है।
जब तक व्यक्ति को ये हसीना नहीं मिलती तब तक होशियार से होशियार को दुनिया पागल ही समझती है। ओर जब मिल जाती है तो मानो किस्मत की लॉटरी ही लग गई। आदमी को समाज में हीरो बनाकर छोड़ती है। हर जगह आदमी का सम्मान होने लग जाता है। जब किसी गधे के हाथ में भी कोई फूल की तरह महकती परफ्यूम की पूरी की पूरी बोतल आ जाये तो किस बुड़बक का भला मन बहका नहीं जायेंगा आधी रात को ? क्योंकि खूबसूरती भी तो एक नशा है। ओर जब नौकरी जैसी खूबसूरत हसीना किसी को दिख जाये तो भरे यौवन में दिल में गुदगुदी होना तो लाजमी है।आदमी इस हसीना के लिए रात-रातभर तपस्या करता है। परीक्षा देता है और रिजल्ट आते ही रिजक्ट हो जाता है। हसीना नहीं मिल पाती। फिर आदमी प्यार में धोखा खाये इंसान की तरह रात-रातभर शराब पीता है। बीड़ी-सिगरेट सुलगाता है। उल्टे-सीधे काम करने लग जाता है। यहां तक की समाज की नजरों में आतंकी बन जाता है। छोकरी और नौकरी से ठुकराया आदमी कई का नहीं रह जाता है।

देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार , अध्ययन -कला संकाय में द्वितीय वर्ष, रचनाएं - विभिन्न हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। पता - गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। पिन कोड - 343025 मोबाईल नंबर - 8101777196 ईमेल - devendrakavi1@gmail.com