सामाजिक

लेख– उपभोक्ताओं को भ्रामक विज्ञापनों से बचाना होगा!

प्राधौगिकी के विकास और उन्नयन के साथ देश के भीतर विज्ञापनों की बाढ़ सी आ गई है। इन विज्ञापनों के द्वारा कम्पनियां अपने उत्पाद के प्रति लोगो को रिझाने और आकर्षित करने का काम करने लगीं। ऐसे में शायद उत्पाद कम्पनियां उपभोक्ताओं के प्रति अपने कर्तव्य और नैतिक जिम्मेदारियों से दूर हटने लगीं। वे पैसा कमाने के बाज़ार में सिर्फ़ नामचीन हस्ती पर निर्भर हो गई। जिसके लिए कम्पनियां समाज के समकक्ष ऐसे व्यक्तियों को प्रस्तुत करती हैं, क़ि आम-लोग उनके झाँसे में आकर उक्त कम्पनी का उत्पाद खरीदने को विवश हो। चाहें वो उत्पाद घटिया क़्वालिटी का ही क्यों न हो। लाभ के लोभ में नामचीन हस्तियां भी अपने फ़ायदे को सर्वोपरि ऱखकर बिना जांच-पड़ताल के कभी-कभी विज्ञापन की हामी भर देते हैं, जिससे उपभोक्ता वर्ग का हित प्रभावित होता है। आज बाज़ार में तमाम ऐसे उत्पाद उपलब्ध हैं, जो मानकों पर खरे नहीं उतरते, और जो सेहत- स्वास्थ्य के अनुकूल भी नहीं हैं, फ़िर भी धड़ल्ले के साथ बाज़ार में क्यों बिकते हैं, क्योंकि उनका प्रचार-प्रसार कोई नामचीन हस्ती कर रहीं होती है, या फ़िर उन पर किसी ब्रांड का टैग लगा दिया जाता है। नियमों को ताक पर रखकर इन वस्तुओं को बेचा जा रहा हैं, और अगर कोई वस्तु नियम के विरुद्ध पाई जाती हैं, तो कुछ समय बाद पुनः बाज़ार में लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ पहुचाने को आ जाती है। बाज़ार में ढेरो उत्पाद हैं, जो केवल और केवल नामचीन हस्ती के नाम पर बिक रहे हैं। अच्छे ख़ासे पैकेज़ की खातिर नामचीन हस्ती भी अपने भले के बारे में सोचते हैं, और कंपनी से करार कर लेते हैं, इनमें नामचीन व्यक्ति और कंपनी की चांदी रहती हैं, ठगा महसूस करता हैं तो वह आम-नागरिक जो अपने रोल-मॉडल को विज्ञापन में देख- समझकर उक्त वस्तु खरीदता हैं।

बीते वर्षों में केरल में फास्ट-फ़ूड के बढ़ते दुष्परिणाम को देखते हुए राज्य सरकार द्वारा करों में वृद्धि किया जाना उचित फैसला था, क्योंकि दुनिया भर में मोटापा आदि बीमारियां इन्हीं कारणों से पनप रहीं हैं, लेकिन क्या किसी कम्पनी ने फ़ास्ट-फ़ूड को खाने से होने वाली समस्याओं से अवगत कराया, नहीं। भ्रामक और झूठे विज्ञापन पाए जाने की स्थिति में सरकार मशहूर हस्तियों पर शिकंजा कसने की तैयारी में हैं। जो कि उपभोक्ताओं के लिए अच्छी ख़बर है। एक विज्ञापन की पंच लाइन है, पहले इस्तेमाल करें, फ़िर विश्वास करें। तो क्या इश्तिहार के इस पंच लाइन को पहले अपने ऊपर हस्तियां लागू करती होंगी। शायद शत-प्रतिशत वादे के साथ कोई कम्पनी भी नहीं कह सकती, कि उसके उत्पाद को उक्त हस्ती उपयोग करता है, फ़िर उपभोक्ता वर्ग के लिए बाज़ार में विज्ञापन करता है। ऐसे में अगर सरकार भ्रामक विज्ञापनकर्ता पर जुर्माना औऱ सजा का एलान करने वाला कानून बनाने के लिए तत्पर दिख रहा है, तो यह उपभोक्ता वर्ग के लिए अच्छी ख़बर है, क्योंकि उपभोक्ता वर्ग अपने चहेते फ़िल्मी हस्ती या अन्य किसी हस्ती द्वारा प्रचार- प्रसार करने पर वस्तु ख़रीद तो लेता है, लेकिन नुकसान होने की स्थिति में उस हस्ती की जवाबदेही शून्य हो जाती थी। जिससे उपभोक्ता वर्ग अपने को ठगा महसूस करता है। ऐसा भी नहीं कि नामचीन हस्ती हर बार अपना हित ही देखता है, कभी-कभी उपभोक्ताओं के बारे में भी सोचता है। तभी तो पुलेला गोपीचंद द्वारा एक मशहूर शीतल पेय कंपनी का विज्ञापन करने से मना कर दिया जाता है, लेकिन ऐसी स्थिति विरले में कभी सुर्खियां बन पाती हैं। पुलेला गोपीचंद का उदाहरण वर्तमान पीढ़ी में ऐसे नामचीन हस्ती की लॉबी के लिए उदाहरण हैं जो कमाई के लिये कोई भी विज्ञापन करने को तैयार हैं। उनको पुलेला गोपीचंद की बातों से सीख लेना चाहिए, कि उपभोक्ता का भी हित हो सकें। अगर नामचीन हस्ती बिना फ़ायदे और नुकसान को समझें किसी वस्तु का विज्ञापन करते हैं, तो यह ग़लत है। जब इन नामचीन हस्तियों को लोगों का अपार स्नेह मिलता हैं, फ़िर उनका भी जनता के लिये कुछ कर्त्तव्य बनता हैं। गोपीचंद ने यह कहते हुए साफ शब्दों में मना कर दिया कि, ये शीतल-पेय पदार्थ स्वास्थ्य के लिहाज से हानिकारक हैं। ऐसी ही हिम्मत अन्य को भी जोहनी होगी, खराब उत्पाद का विज्ञापन न करने से, वरना क़ानूनी कार्यवाही का जो स्वरूप सरकार तय करने वाली है, वह उपभोक्ताओं के अधिकार की रक्षा के लिए आवश्यक है।

उपभोक्ता संरक्षण विधेयक के लागू होते ही विज्ञापनकर्ता हस्ती उत्पादक संस्थान का हिस्सा बन जाएगा। अप्रैल में खाद्य उपभोक्ता मामले और सार्वजनिक वितरण मामले की संसदीय कमेटी ने विज्ञापन को परिभाषित किया था। कानून मंत्रालय के वैधानिक विभाग ने विज्ञापन और विज्ञापनकर्ता को उत्पाद संस्थान का हिस्सा माना है। उपभोक्ता संरक्षण कानून की धारा 75 के तहत भ्रामक विज्ञापन करने वाली हस्ती पर दो वर्ष की सजा और 10 लाख का जुर्माना हो सकता है। दूसरी बार ग़लत विज्ञापन परोसने का हर्जाना काफ़ी महंगा पड़ेगा, कानून के मुताबिक दोबारा ग़लत विज्ञापन प्रचारित करने पर पांच वर्ष की सजा और 50 लाख का जुर्माना होगा। ऐसे में इस कानून के आने के बाद मशहूर हस्तियों की जान सांसत में पड़ने वाली है, क्योंकि अभी तक मात्र मोटी कमाई तक ही रिश्ता ये हस्तियां विज्ञापन प्रचार से रखती थी। अब उन्हे विज्ञापन करने से पहले उत्पाद की विश्वसनीयता को सोलह आने परखना पड़ेगा। तो इससे फ़ायदा जनता और आम उपभोक्ता का भी होगा। अभी तक सिर्फ़ विज्ञापन कोई मशहूर हस्ती कर देती थी, और उसके चाहने वाले आंखे बंद कर उस उत्पाद पर विश्वास कर लेते थे, वो रवायत भी बंद हो जाएंगी। भ्रामक विज्ञापनों से बचाने के लिए कई बार उच्च अदालत ने भी दख़ल दिया, लेकिन उस पर अमल नहीं हो सका। ऐसे में जब अब उपभोक्ता संरक्षण कानून बनने की कगार पर है, तो सभी दलों को सहयोग कर उपभोक्ता के हितोउद्देश्य के लिए आगे आना चाहिए। इस विधेयक की मुख्य बात यह है, कि इसमें सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन ऑथोरिटी के गठन की बात भी की गई है, जो सभी शिकायतों को सुनने के उपरांत कार्यवाही करने का हुक्म देगी। जिससे उपभोक्ता वर्गों का हित सिद्ध होगा, जो आवश्यक भी था।

स्वास्थ्य के विरुद्ध और अन्य नामचीन हस्तियों का भ्रामक विज्ञापन की तरफ नीति को देखकर यह बात सामने आती रहीं हैं कि, क्या उन हस्तियों को ऐसे ख़राब और भ्रामक उत्पादो का विज्ञापन करने दिया जाय? अगर बात की जाय, तो शीतल पेय पदार्थों के अलावा खाद्य पदार्थों और सौंदर्य-प्रशाधन में भी हानिकारक चीजों की मिलावट होती हैं, जो सेहत की दृष्टि से खतरनाक होता हैं। गाहे-बगाहे शोध में भारत में बिकने वाली अधिकतर क्रीम को त्वचा के लिये हानिकारक बताया जाता रहा है। इसके साथ बात शीतल पेय पदार्थों की बात हो ,तो उसमें हानिकारक कैमिकल्स होते हैं, जो पेट और लिवर पर असर करते हैं। न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मैरियन नेस्ले अपने किताब सोडा-पॉलीटिक्स में लिखते हैं क़ि, उसमें यानि पेय पदार्थो में ढेर सारी चीनी से भरपूर पानी के सुगंधित शर्बत से मार्केटिंग होती हैं। शीतल पेय कम्पनियां दो स्तर पर अपनी रणनिति बनाती हैं। पहली सरकार की नीतियों को तोड़ना-मरोड़ना क़ि पेय पादर्थो से सम्बन्धित मसले पर लोगों को पूरी तरह उलझाया जा सके और दूसरी यह क़ि जानी-मानी हस्तियों को जोड़कर अपने उत्पाद का प्रचार करना क़ि बच्चों और युवाओं में लालसा जगा कर धन की उगाही की जा सके। अगर इन बातों में ज़रा सच्चाई है, तो यह लोगों के जीवन से खिलवाड़ है, जिस पर रोक जरूरी है।

दुनिया की दो बड़ी पेय कंपनिया वर्ष 2014 में अकेले अमेरिका में ही विज्ञापनों पर 86.6 करोड़ डॉलर खर्च की थी, जो क़ि स्वास्थ्यवर्धक उत्पादों पर खर्च किये गए राशि से चार गुना ज्यादा रकम थी। बात यहीं नही रुकती, बच्चों को केंद्रित करके विज्ञापनों की संख्या 30-40 फ़ीसदी बढ़ गई है। विश्व स्तर के साथ भारत में इन पदार्थों के बढ़ते दुष्परिणाम को देखते हुए सरकार को व्यापक क़दम उठाने होंगे, और लोगों को भी अपने स्वास्थ्य की तरफ ध्यान देना होगा। जिस तरफ़ सरकार उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में संशोधन करने पर विचार कर रही हैं, उस पर तत्काल में प्रभावी निर्णय लेने की जरूरत हैं। साथ में अगर गोपीचंद के कदमो पर चलकर अन्य जानी-मानी हस्तियों को भी समाज के प्रति अपने कर्तव्य को निभाना चाहिए, और जनता के हित को देखते हुए भ्रामक और स्वास्थ्य विरोधी विज्ञापनों को नहीं करना चाहिए। नहीं तो कानून लागू होने के बाद इन हस्तियों की शायद ख़ैर नहीं होगी।

महेश तिवारी

मैं पेशे से एक स्वतंत्र लेखक हूँ मेरे लेख देश के प्रतिष्ठित अखबारों में छपते रहते हैं। लेखन- समसामयिक विषयों के साथ अन्य सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर संपर्क सूत्र--9457560896