लघुकथा

लघुकथा – बॉयफ्रेंड

एक होती है जननी जो हमे जन्म देती है और कुछ गलती हम करते है तो मार मारकर हमे सीधा भी कर देती थी। शादी के बाद हम बच्चो की अम्मा बन गए पर मार अभी भी खा ही लेते है हम अपनी अम्मा मतलब माँ के हाथ की। और ये तो मंदिर के प्रशाद की तरह होता था कि हर रोज़ जितना खाओगे उतना सुधर जाओगे। हम कोंन सा अनोखे है मार तो सबने ही खाई है घर मे किसी ने थोड़ी तो किसी ने ज्यादा। हम बचपन में स्कूल के नाम से भी डरते थे। एक थे हमारे पिताजी जिनसे डर लगता था और दूसरे थे स्कूल के प्रिंसिपल जो हमको किसी कंस से रत्ती भर भी कम न लगते थे। ऊपर से मुआ होमवर्क जो खेलने के बीच मे आता था हमेशा। सब जैसे हमारी कुंडली मे राहु केतु सर्प बनकर कुंडली मारकर बैठे थे।

अब हम नन्ही सी कली कभी कभार स्कूल से बंक मतलब भाग जाया करते थे। क्या करे पढ़ाई में मन कम और दूसरों की स्टोरी सुनने में ज्यादा मन लगता था हमारा। उसी समय पर एक नई बीमारी का चलन हुआ जिसका नाम था बॉयफ्रेंड, तो हमने भी एक्का दुक्का सहेलियों से पूछ ही लिया कि क्या होता है बॉयफ्रेंड अब जो परिभाषा उन लोगो ने बताई तो हम भी सोचते थे ये बॉयफ्रेंड गिफ्ट देने के लिए ही बनते होंगे शायद नए नए गिफ्ट जो मिलते होंगे लड़कियों को। वो लोग हमको कहानी सुनाते जाते और हम ख्वाबों की दुनियां में खोते जाते। एक दिन हमने भी सोचा चलो ये बॉयफ्रेंड वाला पेज खोलकर देख ही लेते है कि बला क्या है। माँ को जाकर बोला कि माँ एक बॉयफ्रेंड दिला दो। माँ ने ये कंटाप मारा घुमा के कसम से दो दिन तक आवाज नही निकली मुँह से चुपचाप किताबों में घुसे रहे। पर बॉयफ्रेंड तो चाहिए था सोचा माँ ने तो रास्ता ना दिया अब पिताजी से तो बिल्कुल बात नही कर सकते माँ ने तो मारा है पिताजी तो देश निकाला ही न दे दे कहीं| और पिताजी से बात उस कंस (प्रिंसिपल) तक पोहोचने मे देर न लगेगी करे भी तो क्या करे

अब सोचा भैया के पास जाते है। ओखल में सिर् डालना ही है तो मूसल से क्या डरना भैया के पास गए जाकर बोला तो भैया थोड़े समझदार निकले उन्होंने पीटा नही उल्टा प्रश्न किया “क्यों चाहिये तुम्हे बॉयफ्रेंड” हमने बोला क्लास में सब लड़कियां बात करती है की उनके पास बॉयफ्रेंड है बाकी हमारे पास ही नही है। तो हमको बड़ा गंदा लगता है कि बताओ सब बॉयफ्रेंड लेकर घूम रही है हम ही बिना बॉयफ्रेंड के है ऊपर से सबके बॉयफ्रेंड उनको बोहोत गिफ्ट देते है हमारा तो एक भी नही है तो हमें गिफ्ट कहाँ से मिलेगा। भैया ने हमारी बात बोहोत ध्यान से सुनी और डांटा भी नही मारा भी नही। और बड़े प्यार से सिर् सहलाते हुए बोले बस इतनी सी बात पगली लो अभी सुलझा देते है तुम्हारी बात को बोलकर भैया ने हमको बुलाया और आईने के सामने खड़ा कर बोले क्या दिखता है इसमें हम बोले हम दिखते है। भैया बोले कि ये आईने को तुम्हारा बॉयफ्रेंड समझो और इसमें जो दिख रहा है ना उसको इस आईने का गिफ्ट समझो। देखो कितना सुंदर उपहार है और तुम जितना चाहो इस आईने से बात कर सकती हो और ऐसा कहकर भैया मुस्कुरा दिए। और हमें तो जैसे एक नया दोस्त मिल गया भैया के रूप में। और वो आईना जैसे हमारी सब समस्याओं का निवारण कर गया।

— नेहा शर्मा

नेहा शर्मा

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One thought on “लघुकथा – बॉयफ्रेंड

  • राजकुमार कांदु

    वाह !

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