भूल स्वीकार
दीपिका माँ बन गई, इतना सुनते ही पूरे परिवार में खुशी की लहर दौड़ गयी | परन्तु क्षणभर बाद खुशी मायुसी में बदल गयी, जब दीपिका के परिवार वालों को पता चला कि बच्चा तो किन्नर है |
पूरे परिवार ने दीपिका के उस नन्हें – मुन्ने को स्वीकार करने से मना कर दिया | खुद दीपिका के पति यानी उस नवशिशु के बाप ने भी यह कहते हुए मुँह फेर लिया कि ‘हम इस कचडे का क्या करेंगे, इसे देदो किसी किन्नर संगठन को अथवा अनाथालय को, कोई पूछेगा तो कह देंगे | बच्चा मृत जन्मा था |’ पर दीपिका तो अपने शिशु को अपनी मातृछाया में पालना चाहती है, उसे अपनी छाती का दूध पिलाना चाहती है, आखिर क्या कमी है | उसके सुघड़ से राजकुमार में, रूप-रंग से कौन बता सकता है कि वो….. है ? और दीपिका की आंखों से गंगा-जमुना की धारा फूट पड़ी |
यह देख दीपिका के पति का हृदय पिघलने की वजाय और अधिक पत्थर सा कडा हो गया | आगबबूला होते हुए बोला – ‘तुझे अगर मेरे साथ मेरे घर में रहना है तो इस मनहूस बच्चे को अपने से अलग करना ही होगा |’
दीपिका रहम की भीख मांगते हुए गिड़गिड़ा उठी -‘पिछले वर्ष देवर आलोक का बाईक एक्सीडेंट हुआ था, तब डाक्टर ने क्या कहा था, कि आलोक कभी बाप नहीं बन सकते | फिर वो क्यों नहीं निकाले आपने घर से, उनमें और मेरे बेटे में क्या फर्क है…?’
इतना सुनते ही दीपिका के पति, सास-ससुर, देवर आदि सब सन्न रह गये | तभी कमरे में डाक्टर साहब आ पहुंचे, उन्होंने समझ लिया कि झगड़ा किस बात पर हो रहा है | उन्होंने दीपिका के परिवार वालों को समझाया कि अब किन्नर समाज भी हमारी – तुम्हारी तरह ही सम्मान जनक जिंदगी जी सकते हैं, उन्हें भी वो हर अधिकार प्राप्त हैं जो हमें हैं और फिर ये हमारी ही तो देन हैं, हमारे ही समाज का एक हिस्सा हैं, फिर इन्हें किसी दूसरी दुनिया का प्राणी क्यों समझा जाये |
यह सुनते ही दीपिका के परिवार वालों की आंखें खुल गईं | उन्होंने अपनी भूल स्वीकार करली |
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा