लघुकथा

आधुनिकता

 

शेठ जमनादास के घर पार्टी अपने शबाब पर थी । लॉन में एक तरफ खाने पीने की चीजों के स्टॉल लगे हुए थे । एक कोने में बार का भी स्टॉल लगा हुआ था । सामने मंच पर ऑर्केस्ट्रा वाले कोई मीठी सी धुन बजा रहे थे । धुन की लय पर मेहमान जोड़े थिरक रहे थे । वर्दीधारी वेटर उनकी सेवा के लिए दौड़भाग कर रहे थे । पार्टी लॉन में बिखरी धीमी रंगीन रोशनी वातावरण को रहस्यमय बनाये हुए थी । शेठ जमनादास की इकलौती सुपुत्री कामिनी पंद्रह वर्षों बाद विदेश में अपनी पढ़ाई पूरी कर आज ही स्वदेश लौटी थी । इसी खुशी में जमनादास ने आज इस पार्टी का आयोजन किया था । कामिनी को प्रभावित करने की नीयत से सभी मेहमान अपने अपने लड़कों के साथ आधुनिक वेशभूषा में सजे धजे इधर उधर घूम कर अपने आधुनिकता की नुमाइश कर रहे थे । फर्राटे से अंग्रेजी बोलकर व जताकर खुद पर खुद ही आधुनिक होने का ठप्पा लगा रहे थे । मेहमानों की नजरें अब कामिनी को ही तलाश रही थीं कि तभी मंच पर उद्घोषक ने घोषणा की ” लेडीज एंड जेंटलमैन ! तालियों के साथ स्वागत कीजिये सुश्री कामिनी जी का । ” मेहमानों की करतल ध्वनि के बीच कामिनी ने विशेष बनाये गए मंच पर प्रवेश किया । लंबी , गौरवर्णीय व छरहरे कद की स्वामिनी कामिनी साड़ी में लिपटी हुई कोई अप्सरा जैसी लग रही थी । मंच पर आते ही उसने सबसे पहले हाथ जोड़कर सबका अभिवादन किया और फिर अपना अल्प परिचय देकर सबका हृदय से धन्यवाद कहा !
उसका हिंदी में बात करना , हाथ जोड़कर सबको अभिवादन करना और फिर शुद्ध हिंदुस्तानी वेशभूषा सबकी चर्चा का विषय बन गया । सबकी खुसर फुसर का सहज अंदाजा लगाते हुए कामिनी ने मुस्कुराते हुए एक बार फिर माइक थामा और फिर उसकी मधुर स्वरलहरी एक बार फिर लॉन में गूंज उठी ” आप लोगों को ताज्जुब हो रहा होगा इतने वर्षों बाद विदेश में रहकर वहीं पली बढ़ी और पढ़ी लिखी मैं हिंदी क्यों बोल रही हूँ , साड़ी क्यों पहन रखी है ? तो आपको बता दूं हमारे पुरखों ने बहुत पहले ही कहा है नकल में भी अक्ल की जरूरत होती है । हम जिन पश्चिमी देशों की नकल आधुनिकता के नाम पर करते हैं वह दरअसल उन देशों में उनकी जरूरत है । पाश्चात्य देशों में सर्दी से बचने की खातिर सूट बूट और कोट टाई का प्रचलन है जबकि हम अपने यहां भीषण गर्मी में भी इन परिधानों को अपने ऊपर थोपे हुए हैं । कई देशों में सामान्य से अधिक गर्मी होने पर कुछ हल्के फुल्के कपड़ों का प्रचलन है जिसमें जिस्म की नुमाइश भले हो लेकिन गर्मी से राहत मिले यही मंशा होती है लेकिन हमारे यहां चाहे भले सर्दी ही क्यों न हो आधुनिकता के नाम पर स्लीवलेस व जिस्म की नुमाइश करने वाले वस्त्रों का ही प्रचलन बढ़ता जा रहा है । मेरे जैसे वस्त्र पहननेवालों को शायद आप लोग आधुनिक मानने से ही इनकार कर दें लेकिन मैं आपसे कहना चाहती हूँ कि आधुनिकता की पहचान आपके पहनावे और बोली से नहीं अपितु आपके संस्कारों , आपके विचारों व आपके क्रियाकलापों से है । यह कैसी आधुनिकता जिसमें आपके जिस्म तो खुले हुए दिखें लेकिन मन में वही अठारहवीं सदी की गंदगी भरी रहे । हम कितने भी आधुनिक हो जाएं अपने मन ,कर्म व विचारों से लेकिन यह हमेशा ध्यान रखें हमारी बोली , हमारे संस्कार , हमारी संस्कृति , हमारे रीतिरिवाज ही दुनिया में हमारी पहचान हैं । हमें सोचना चाहिए आधुनिकता की दौड़ में पाश्चात्य समाज का अंधानुकरण करते हुए कहीं हम अपनी पहचान तो नहीं खो रहे ? ” कामिनी का बोलना रुकते ही शेठ जमनादास ने ताली बजायी और फिर पूरा वतावरण तालियों की शोर से गुंजायमान हो उठा ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

2 thoughts on “आधुनिकता

  • लीला तिवानी

    प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, कामिनी ने बहुत सुंदर बात कही. अत्यंत सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    राजकुमार भाई , कहानी आधुनिकता बहुत अछि लगी .हम लोग नकल करने के आदी हो चुक्के हैं . हमारी बेटिया और बहु, कभी इंडियन ड्रेस साड़ी शलवार पहन लेती हैं कभी वेस्टर्न ड्रेस जो उन्हें काम पर पहननी पढ़ती है . हमें अपनापन भूलना नहीं चाहिए .

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