मुक्तक/दोहा

“दोहा”

हरिहर तुम बिन कौन अब, हरे जगत की पीर

मंशा मानस पातकी, शीतल करो समीर।।-1

प्रभु आया तुम्हरी शरण, तुम हो तारणहार

तन मन धन अर्पण करूँ, हे जग पालनहार।।-2

सुख संपति सुंदर भवन, निर्मल हो व्यवहार

घात हटे घट-घट घृणा, घटना हटे कुठार।।-3

मूरख मनवा हरि बिना, भरे न भव्य विचार

कामधेनु बिन बाछड़ा, महिमा अपरम्पार।।-4

पारिजात हरि बिनु कहाँ, ऊसर कहाँ अनार

रजनीगंधा रात की, दिन में कहाँ अन्हार।।-5

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ