गीत/नवगीत

गीत

मेरी विधा से इतर एक प्रयास,,,,,,,

दिन के बाद रात का आना
ये सच है, ये अटल भी है,
तेरे इसी आज में शामिल,
आने वाला कल भी है,

हकीकत पर जीवन की
रुककर कुछ विचार कर,
यही एक सच्चाई है,,,
इसे तु स्वीकार कर,,,
मुश्किलें यदि है तो क्या,,,
मुश्किलों के हल भी हैं,,,
तेरे इसी आज में शामिल,,,
आने वाला कल भी है,,,

यहां बुढापा, यहां जवानी,
ये तय है, ये नियति है,
शुरू से अंत तक सांसों की,
केवल उल्टी गिनती है,
कठिन यदि न माने तो,
ये बड़ा सरल भी है,,,,
तेरे इसी आज में शामिल,,,
आने वाला कल भी है,,,,

ये यौवन, ये तेरा रुप,
निखरेगा और ढलेगा भी,
संग तेरे कदमों के ये तो,
कुछ कदम चलेगा भी,
जो भी चाहे इसको समझो,
यही झोपड़ी, महल भी है,,,
तेरे इसी आज में शामिल,
आने वाला कल भी है,,,,

— जयकृष्ण चांड़क ‘जय’
हरदा म प्र

*जयकृष्ण चाँडक 'जय'

हरदा म. प्र. से