कविता

चालीस पार की औरतें

हजारो मन में ख्वाइश
और अरमान दबा लेती है,
हल्की -हल्की झुर्रियों को
मेकअप से छुपा लेती है,
लोग क्या कहेगे ये सोच कर
अपनी खुद की खुशियों को
सबसे छुपा लेती है ,
चालीस पार की औरते
भी सीने में दिल लिए होती है।
हर बार क्यों उसे उसकी
उम्र की दुहाई दी जाती है ,
इस उम्र में ये शोभा नही देता ,
ये बात हर बार बताई जाती है।
बात चीत से लेकर कपड़ो तक
हिदायत दी जाती है,
माँ आप पर ये सब अब सूट नही होगा
खुद के बच्चो द्वारा ये बात बताई जाती है ।
खुल कर मुस्कुराने पर पाबन्दी लाद जी जाती है ,
चालीस पार की औरते
अब कहाँ अपने मन का कर पाती है ।
खूबसूरत दिखने की चाह में
थोडा श्रृंगार क्या कर जाती है ,
अपनों से ज्यादा पड़ोसियों
की आखों में खटक जाती है।।
उम्र अपनी खुशियों का
पैमाना नही होती ,
अरमानो को पूरा करने मे यें
उम्र रोड़ा नही बनती
चालीस पार की औरते
क्या मन में कोई ख्वाइश नही रख सकती ।
सपना परिहार

सपना परिहार

श्रीमती सपना परिहार नागदा (उज्जैन ) मध्य प्रदेश विधा -छंद मुक्त शिक्षा --एम् ए (हिंदी ,समाज शात्र बी एड ) 20 वर्षो से लेखन गीत ,गजल, कविता ,लेख ,कहानियाँ । कई समाचार पत्रों में रचनाओ का प्रकाशन, आकाशवाणी इंदौर से कविताओ का प्रसारण ।

One thought on “चालीस पार की औरतें

  • कुमार अरविन्द

    वाहहहहहहह

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