देहरी उदास है
द्वारे को दीप भी देहरी उदास।
तेरे आगमन की आंगन को आस।
आओगे हे दिल में आस।
बांट लोगे दुःख ऐसी आस।
फूल भी कुम्हला रहे देख बाट।
सुनी गली पड़ी हे और हाट।
हृदय में पिन सी चुभ जाती है ।
जब तुम मुख मोड़ चले जाते हो।
प्यारा का एहसास कब रीत गया।
ऐसे जैसे सूरज पश्चिम में डूब गया ।
सूरज की किरण है हथेली में तेरे लिए।
मुठ्ठी में समेट लो या छोड़ दो मेरे लिए।
सींची थी प्यार से ऋतु बेल कभी ।
प्रीत की वो बेल सुखे से ग्रस्त है।
पाने की आरज़ू से मन मेरा मस्त है
तू अपने ही ख्यालों में मद मस्त है।
बूंद बूंद जल स्नेह के रस पागी ।
रात रात भर चांद देख मैं जागी ।
करती रही भोर को इंतजार।
है मेरे सुघड़ प्रियतम भरतार ।
द्वारे को दीप भी देहरी उदास।
तेरे आगमन की आंगन को आस ।