गीतिका/ग़ज़ल

प्यार

प्यार हो पास या दूर मजा देता है
दुख होता है तब जब दगा देता है

तुम्हारे ख़त को मैंने कई बार पढ़ा
हर बार वह दिल के तार बजा देता है

बिछड़ने का दर्द किसी विरही से पूछो
ऐसा लगता है जैसे कोई कजा देता है


हर कोई दुर्बल को सताता है जग में
सबल को यहां कौन सजा देता है


दण्ड देने का निराला अंदाज है उसका
वह चुप हो कर के ‘अरुण’ सजा देता है

डॉ. अरुण कुमार निषाद

निवासी सुलतानपुर। शोध छात्र लखनऊ विश्वविद्यालय ,लखनऊ। ७७ ,बीरबल साहनी शोध छात्रावास , लखनऊ विश्वविद्यालय ,लखनऊ। मो.9454067032