गीत/नवगीत

भीगी राखी

भीगी राखी, रोया सावन।
भईया तुम बिन,सूना आंगन।
दिन बीते जैसे युग गुजरे,
टूट गये अश्कों के पहरे,
आ पहुंचा फिर पर्व सुहावन
भईया तुम बिन सूना आंगन।
परदेसी तुम हुये मुसाफिर,
आ जाओं अब मेंरी ख़ातिर,
कब से राह निहारे है मन।
भईया तुम बिन सूना आंगन।
अब तो माँ बिस्तर पर लेटी,
नाम तुम्हारा रटती रटती,
खो न जाए तुम बिन ये तन।
भईया तुम बिन सूना आंगन।
पापा की कटती ना रातें,
कर डाले कितने जगराते,
छुप छुप के बरसे जल नैनन।
भईया तुम बिन सूना आंगन।
देर हो गई रह गया आना,
राह देखते हुये रवाना,
दोनों बसे अब दूर गगन।
भईया तुम बिन सूना आंगन।
फिर भी हुआ न तेरा आना,
बना मायका अब विराना,
घर आंगन का बिखरा कण कण।
भईया तुम बिन सूना आंगन।
पुष्पा “स्वाती”

*पुष्पा अवस्थी "स्वाती"

एम,ए ,( हिंदी) साहित्य रत्न मो० नं० 83560 72460 pushpa.awasthi211@gmail.com प्रकाशित पुस्तकें - भूली बिसरी यादें ( गजल गीत कविता संग्रह) तपती दोपहर के साए (गज़ल संग्रह) काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है