कविता

सृजन पथ पर…

 

सृजन पथ पर बढ़े अगर,
तो बाधाएँ संग आएँगी।
शूल बिछा कर पग पग पर,
तुझे देख देख मुस्काएंगी।

अभी राह हैं बेखबर,
तेरे स्वप्नों की दौड़ से।
हँस रही है देख तू आगे,
मंज़िल अगले मोड़ पे।
कड़ी धूप में जो कोमल,
ये आशाएं कुम्हलायेंगी।
दिन बदलेंगे पहले से,
फिर हरी भरी हो जाएंगी।
सृजन पथ पर बढ़े अगर,
तो बाधाएँ संग आएँगी।

पाँव के छाले देखे बिन,
लम्बे डग भरते जाना तू।
प्रत्युत्तर में शब्द नही, बस
करके सदा दिखाना तू।
पर्णकुटी तेरे सपनों की,
शीशमहल कहलाएगी।
इतिहास के पन्नों में
गाथाएं गूँथी जाएँगी।
सृजन पथ पर बढ़े अगर,
तो बाधाएं संग आएँगी।

*डॉ. मीनाक्षी शर्मा

सहायक अध्यापिका जन्म तिथि- 11/07/1975 साहिबाबाद ग़ाज़ियाबाद फोन नं -9716006178 विधा- कविता,गीत, ग़ज़लें, बाल कथा, लघुकथा