गीतिका/ग़ज़ल

“गीतिका”

मापनी- 22 22 22 22, समान्त- अत, पदांत- की

“गीतिका”

उग आई ऋतु है चाहत की

मत लाना दिल में शामत की

देखो कितनी सुंदर गलियाँ

खुश्बू देती हैं राहत की।।

जब कोई लगता दीवाना

तब मन होता है बसाहत की।।

दो दिल का मिलना खेल नहीं

पढ़ना लिखना है कहावत की।।

माना की दिल तो मजनू है

पर मत चल डगर गुनाहत की।।

देखो कलियाँ चंचल होती

मत करना नजर शिकायत की।।

घूमो नाचो गाओ गौतम

पर मचलन रहन किफायत की।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ