कविता

तनहाई

इतना बड़ा शोर – सुनी अनसुनी आवाज़ें
इतनी भरी भीड़ – दिखी अनदिखी सूरतें
इतनी लंबी भावनाएँ – सही अनसही कसकें
छाये गहरे अंधेरे में
इतना नुकीला प्रकाश
तन, मन – नयन, नज़र
अभी इधर कभी उधर
वजहों की बारिश
मरने, जीने कभी भटकने
समय बे-व्यस्त
हालत अस्त-व्यस्त
तनहाई – तनहाई – तनहाई
कौन कहता मैं
तनहाई में हूँ?