उपन्यास अंश

ममता की परीक्षा ( भाग – 14 )

 

जमनादास जी साधना की तस्वीर देखते ही बुरी तरह चौंक गए थे । अमर के कमरे में उसकी तस्वीर टंगी होने का सीधा सा मतलब निकलता था कि वह अमर की माँ होगी या फिर ऐसी ही कोई बहुत नजदीकी । लेकिन यह तो सिर्फ कयास होगा और कयास गलत भी साबित होते रहे हैं । पुष्टि करनी होगी । लेकिन कैसे ? अभी कुछ सोच समझ ही रहे थे कि रजनी के साथ लल्लन जी आते हुए दिखे । दूर से ही दोनों हाथ जोड़कर सेठ जमनादास जी का अभिवादन करते हुए लल्लन जी उनके बेहद करीब आ गए ।
” अमर अभी कुछ ही देर पहले कमरा खाली करके यहां से गया है ! ” उनके आने का मकसद समझते हुए लल्लन जी ने उन्हें बताया था ।
सुनते ही रजनी व्यग्रता से बोल उठी ,” कहाँ गए हैं ? कुछ बता कर गए हैं आप से ?”
” नहीं ! कहाँ जाना है यह तो नहीं बताया ! लेकिन कंपनी ने तत्काल तबादला कर दिया है यह बता रहा था । जल्द से जल्द वहां जाकर जॉइन करना है यही बताया । ” लल्लन जी ने मजबूरी जताते हुए जो जानते थे बता दिया ।
तभी जमनादास जी बोले ,” भाईसाहब ! इजाजत हो तो मैं कुछ पूछना चाहता हूं आपसे ! ”
” कोई बात नहीं सेठजी ! पूछिये ! क्या पूछना है आपको ? इसमें इजाजत की क्या बात है ? ” लल्लन जी ने शालीनता से जवाब दिया था ।
” ये अंदर अमर के कमरे में जो एक औरत की तस्वीर टंगी है क्या आप जानते हैं उसके बारे में ? मसलन कौन है ? अमर से उसका क्या नाता है ? ” सेठ जी ने अपनी जिज्ञासा शांत करने का प्रयास करते हुए पूछा था ।
इससे पहले कि लल्लन जी कुछ जवाब देते रजनी ने बताया ,” पापा ! ये अमर की माताजी हैं । इनका नाम साधना है । लेकिन आप यह सब क्यों पूछ रहे हैं ? ”
” कोई विशेष बात नहीं है बेटा ! दरअसल यह तस्वीर देखकर कुछ पुरानी यादें ताजा हो गई थीं । मैं तो बस पुष्टि करना चाहता था कि मैं सही पहचान रहा हूँ कि नहीं ? या फिर मुझे कोई गलतफहमी हो रही है । ” सेठ जमनादास जी ने टालने की गरज से जवाब दिया लेकिन रजनी तो वो बला थी जो आसानी से किसी का पीछा कहाँ छोड़ने वाली थी ।
” तो क्या रहा ? गलतफहमी दूर हुई आपकी ? ” रजनी बोली ।
” हाँ बेटी ! ” भावावेश में सेठ जमनादास बोल पड़े ,” मुझे पता चल गया है कि मैं जो समझ रहा था वही सही पहचान है इस तस्वीर की । यह साधना है । मेरे मित्र गोपाल की गर्लफ्रेंड ! तस्वीर देखकर कॉलेज के दिन याद आ गए । ”
” ओह ! ” रजनी के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिख रही थीं ,” अब क्या करें पापा ? अमर तो यहां से जा चुका है । उसका कोई पता भी नहीं है जहां उसे खोजा जा सके । कहाँ खोजें उसे ? ”
” जाने दो बेटा ! वह लड़का तुम्हारे लायक था ही नहीं । वह तो मैं तुम्हारी इच्छा का सम्मान करते हुए मान गया था । लेकिन वो कहते हैं न ‘ चोर चोरी से जाए हेराफेरी से न जाय ! ‘ यह अमर भी वैसा ही निकला ! अब भूल जाओ उसे बेटी ! उसे भूलना ही ठीक रहेगा । ” सेठ जमनादास जी को उसे समझाने का मौका मिल गया था । लेकिन रजनी इतनी जल्दी हार कहाँ माननेवाली थी ? ” नहीं पापा ! जब तक अमर सामने मुझे मिल नहीं जाते मुझे यकीन नहीं होगा कि वो ऐसा भी कर सकते हैं । मुझे पता है वो मुझे बहुत प्यार करते हैं । जरूर उनकी कोई मजबूरी होगी जो वो अभी मिलना नहीं चाह रहे । लेकिन मुझे मिलने जरूर आएंगे । तब तक उनका इंतजार रहेगा । लेकिन अभी एक उम्मीद है । अभी वो शायद रेलवे स्टेशन ही पहुंचे होंगे । अगर तुरंत कोई ट्रेन नहीं मिली होगी तो वो शायद स्टेशन पर दिख जाएं । वैसे भी यहां हमेशा ट्रेन नहीं आती हैं । ” कहते हुए उसके चेहरे पर उम्मीद की किरण साफ चमक रही थी ।
लल्लन जी को नमस्ते करके वह जमनादास जी की तरफ मुड़ते हुए बोली ,” चलो पापा ! चलें ! कहीं देर न हो जाय ! ”
” हाँ ! हाँ ! चलो ! ” कहते हुए जमनादास जी ने भी लल्लन जी की तरफ देखकर ईशारे किये और हाथ हिलाते हुए रजनी के साथ कार की तरफ बढ़ गए । रजनी के कदमों में गजब की तेजी आ गई थी । जमनादास जी को उसका साथ देने के लिये बड़ी तेजी से चलना पड़ रहा था ।
रजनी पहले ही कार में बैठकर स्टीयरिंग व्हील संभाल चुकी थी । जमनादास जी के बैठते ही उसने कार पीछे लेकर बगल की संकरी गली में घुसा दी और फिर एक झटके से आगे लेकर गाड़ी को विपरीत दिशा में मोड़ दिया था । बस्ती की कच्ची सड़क पार करते ही कार मुख्य सड़क पर शहर की तरफ पर तेजी से आगे बढ़ने लगी ।
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शहर की भीड़भाड़ के बीच अपनी राह बनाती बस किसी तरह अपने गंतव्य की तरफ रेंगते हुए आगे बढ़ रही थी कि तभी कंडक्टर ने आवाज लगाई ” बस अड्डा आ गया भाई ! बस अड्डा ! ”
और बस सड़क के बाएं किनारे की तरफ बढ़ने लगी और गति कम होने लगी । इसी रास्ते पर थोड़ी दूर और जाकर रेलवे स्टेशन था । अमर रेलवे स्टेशन ही जाना चाहता था ताकि दूर कहीं जाने की ट्रेन पकड़ सके लेकिन तभी उसके दिमाग ने उसे चेताया ‘ ये बेवकूफी मत करना अमर ! बिलासपुर जानेवाली ट्रेन में अभी बहुत समय बाकी है । रजनी तेरी तलाश में कमरे पर गई होगी । वहाँ तुझे न पाकर वह सीधे रेलवे स्टेशन पर ही पहुंचेगी तुझे खोजते हुए । और वह तुझे वहां जरूर खोज लेगी । स्टेशन पर तू उसकी निगाहों से नहीं बच सकता । अगर तू वाकई उससे बचना चाहता है तो यहीं उतर जा । कोई न कोई बस यहां से दूसरे शहर के लिए तैयार मिल जाएगी । पहले यहां से निकलने की सोच । फिर आगे रास्ते अपने आप मिलते जाएंगे । ‘ दिमाग की सुनकर जब तक वह हड़बड़ाते हुए उठता कि बस शुरू हो गई थी । उसने जोर से चिल्लाकर ड्राइवर से बस रोकने के लिए कहा ,” अजीब लोग हैं । अपना स्टॉप आने पर भी सोए रहते हैं ! ” बड़बड़ाते हुए ड्राइवर ने बस एक किनारे रोक दिया था । अपना बैग संभाले हुए अमर उतर पड़ा बस से और चल पड़ा बस अड्डे की ओर जिसका मुख्य प्रवेश द्वार सामने ही था । यहाँ से राज्य के समस्त शहरों के लिए बस सेवा उपलब्ध थी । बैग संभाले हुए अमर ने पूछताछ खिड़की पर से अगली छुटनेवाली बस के बारे में पता किया। रामनगर जानेवाली बस चलने के लिए बिल्कुल तैयार खड़ी थी । अमर ने रामनगर का टिकट लिया और बस की तरफ बढ़ गया । उसके बैठते ही कण्डक्टर ने बस में प्रवेश किया । बस में बैठे मुसाफिरों की गिनती करने के बाद भी वह चिल्लाया ” अरे भाई सब लोग बैठ गए हैं न ! कोई बाकी तो नहीं ? ” और फिर कोई जवाब न पाकर उसने सिटी बजाकर बस आगे बढ़ाने का संकेत दे दिया ।
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आंधी तूफान की गति से कार भगाती रजनी की पूरी कोशिश थी कि वह उस बस को रास्ते में ही पकड़ ले लेकिन अब वह शहर में दाखिल हो चुकी थी और उसे इस रूट से आनेवाली कोई बस रास्ते में नहीं मिली थी । अपनी कार उसने रेलवे स्टेशन जानेवाली सड़क पर मोड़ ली । कुछ ही देर बाद कार पार्किंग में खड़ी करके रजनी भागती हुई पूछताछ खिड़की पर जा पहुंची । वहाँ से उसे पता चला अगले दो घंटे तक वहां रुकने वाली कोई ट्रेन नहीं है । दो घंटे बाद बिलासपुर पैसेन्जर आएगी जो हर जगह रुकती है । यह जानकारी पाकर उसकी सांस में सांस आई । उसने इत्मीनान ने अपने पापा की तरफ देखा । वह भी उसी की तरफ देख रहे थे । प्लेटफॉर्म पर प्रवेश करके दोनों एक दूसरे से विपरीत दिशा में आगे बढ़ गए । रजनी को पूरी उम्मीद थी अमर यहीं कहीं बैठा मिल जाएगा । प्लेटफॉर्म के अंतिम सीरे तक खोजकर भी जब अमर उसे कहीं नहीं मिला तब यह सोचकर कि वह शायद पापा को मिल गया होगा वह वापस उस तरफ बढ़ने लगी जहां उसने अपने पापा को छोड़ा था । वह वहां पहुंच चुकी थी जहां से उन्होंने प्लेटफॉर्म पर प्रवेश किया था । दूर उसे जमनादास जी आते हुए दिखे लेकिन उन्हें अकेले देखकर उसका दिल बैठ गया । ‘ हे भगवान ! अब क्या होगा ? अमर यहां भी नहीं मिला ! ‘ सोचते हुए रजनी के सभी रोमछिद्रों ने एक साथ पसीने का उत्सर्जन किया । दिल की धड़कनें असामान्य गति से धड़क उठीं और फिर वह धीरे से वहीं यात्रियों के बनाये गए बेंच पर पसर गई । जमनादास जी दौड़ कर नजदीक आये । नथुनों के आगे उल्टी हथेली रखकर उसकी साँसों का जायजा लिया और फिर घबराहट में उसे लगभग झिंझोड़ ही दिया । लेकिन कोई नतीजा नहीं । उसकी सांसें तेज चल रही थीं लेकिन वह अपना सुध बुध खो बैठी थी । कुछ ही देर बाद एक एम्बुलेंस बड़ी तेजी से शोर मचाती हिंदुजा हॉस्पिटल की तरफ भागी जा रही थी ।

क्रमशः

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।