सामाजिक

अभी अगली किसी और ऐसी ही घटना का इंतजार कीजिए

संजलि वो लड़की है जिसे 18 दिसंबर को आगरा के पास मलपुरा मार्ग पर जिंदा आग के हवाले कर दिया गया. ये वाकया भरी दोपहर में हुआ जब संजलि स्कूल की छुट्टी के बाद साइकिल से घर लौट रही थीं उसी समय कुछ लोगों ने उस पर हमला कर उसे आग के हवाले कर दिया। आज संजली हमारे बीच नहीं है वो एक दुखद घटना का हिस्सा बन चुकी है, कुछ दिनों बाद उसकी हत्या की फाइल अदालत में जा चुकी होगी, जहाँ वकील होंगे, गवाह होंगे। उनके बीच बहस होगी, हत्यारों को ढूंढा जायेगा. किन्तु उस कारण को खोजने की कोशिश कोई नहीं करेगा जिस कारण आये दिन कोई न कोई संजली मौत का निवाला बनकर अखबारों की खबर बनती है।

संजली का हत्यारा कोई और नहीं बल्कि खुद उसके ताऊ का बेटा योगेश था। यानि उसका भाई जिसने संजली की मौत की अगली ही सुबह जहर खाकर आत्महत्या कर ली। कहा जा रहा है “वो संजलि की ओर आकर्षित था और उसके इनकार करने की वजह से उसने ये कदम उठाया” पुलिस ने हत्या के इस मामले में योगेश के अलावा उसके ममेरे भाई आकाश और योगेश के ही एक और रिश्तेदार विजय को गिरफ्तार किया है।

कुछ सालों पहले तक ऐसी घटनाएँ अखबारों के पन्नों के साथ दम तोड़ दिया करती थी। विरला ही कोई खबर दूबारा रद्दी अखबार के बने लिफाफों पर दिख जाये वरना कुछेक लोगों के जेहन को छोड़कर कहीं नहीं दिखती थी। पर अब ऐसा नहीं है जब से सोशल मीडिया आया इन्सान चले जाते हैं लेकिन घटनाएँ जीवित रहती है, घटनाओं में धर्म और जाति तलाश की जाती है उन पर राजनीति होती हैं। संजली की हत्या को भी यही जातीय रंग देने की कोशिश जारी है, ताकि सच का गला झूठ के पंजो से दबाया जा सके।

आखिर क्या कारण रहा कि अस्सी के दशक से पहले रिश्ते कुछ और थे, किन्तु इस दशक के बाद रिश्तों के पैर फिसलने शुरू हुए और फिसलते-फिसलते यहाँ तक आ पहुंचे कि रिश्तों की सारी मर्यादा को किशोर युवा युवतियां तार-तार कर बैठे। यदि हम अब भी संभलना चाहते हैं तो हमें सच को सुनना होगा, उसका अनुसरण करना होगा क्योंकि रिसर्च करने वालों का मानना है कि टीवी, मोबाइल की स्क्रीन पर दिखाई गई हिंसा, प्रेम के द्रश्य किशोरों के दिमाग पर बुरा असर डालकर उन्हें संवेदनहीन बना रहे है। दिमाग का वो हिस्सा जो भावनाओं को नियंत्रित करता है और बाहरी घटनाओं पर प्रतिक्रिया जताता है, रिश्तों-नातों की गरिमा को समझना सिखाता है, जो बचपन के दौर में विकसित होता है वो हिस्सा हिंसक दृश्यों के देखने के कारण लगातार कुंद होता जा रहा है। यानि जो कुछ स्क्रीन पर घट रहा है, वह दिमाग में घर कर रहा है। जिसकी चपेट में युवा और किशोर आ रहा है।

कुछ समय पहले अमेरिका की नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यरोलॉजिकल डिसॉर्डर एंड स्ट्रोक ने अपनी एक टीम के साथ फिल्मों के हिंसक दृश्यों का असर देखने के लिए कुछ बच्चों पर प्रयोग किए। इन सबकी उम्र 14 से 17 साल के बीच थी। इन बच्चों को 60 फिल्मों में से चुने गए हिंसक दृश्यों के चार-चार सेकेंड के क्लिप दिखाए गए। इन विडियो को देखने के दौरान एमआरआई के जरिये उनकी दिमागी हरकतों की जानकारी जुटाई जा रही थी। बच्चों की उंगलियों में सेंसर भी लगाए गए थे जो उनकी त्वचा में हो रही संवेदनाओं की जानकारी हासिल कर रहे थे। प्रयोग के बाद जो नतीजे मिले. हिंसा वाले दृश्यों को देखने के दौरान समय बीतने के साथ बच्चों के दिमाग की सक्रियता कम होती चली गई। ये कमी दिमाग के उस हिस्से में हुई जो भावनाओं को नियंत्रित करता है और उन पर प्रतिक्रिया जताता है।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि यदि पर्दे पर देश-विदेश के मनोहारी दृश्य, हैरतअंगेज कार्य, रोमांस का वातावरण देखकर सभी व्यक्ति पुलकित और आनन्दित हो उठते हैं तो अश्लीलता, हिंसा देखते वक्त कोई प्रभाव नहीं पड़ता हो? असल में ऐसे दृश्यों का ही किशोर मन पर बड़ा बुरा प्रभाव पडता है, वे छोटी उम्र से ही अपने आवेगों पर से नियंत्रण खो बैठते है। नतीजा ये भी होता है पर्दे पर देखा गया प्रेम किशोरों को इस कद्र प्रभावित करता है कि स्कूल जैसी संस्थाओं में कुछ किशोर और किशोरियां अपने प्यार के किस्से को बढ़ा-चढ़ाकर सुनाते है। ऐसे में उनके प्यार की प्रतिस्पर्धा होती भी देखी गई है। जो किशोर कुछ समय पहले स्कूल के विषयों पर चर्चा करता था वह आज प्यार, जुदाई बदला और बेवफाई जैसी बातें कर रहा हैं।

मीडिया भी किशोर और किशोरियों को इस राह पर पहुंचाने के लिए काफी हद तक उत्तरदायी है। विभिन्न चैनल समूहों पर शिक्षा की अपेक्षा प्रेम, बेवफाई उसमें नायक-नायिकाओं से बदले की भावना जैसी चीजों पर अधिक बल दिया जा रहा है, इनमें उत्तेजक दृश्यों की भरमार रहती है। उत्तेजक दृश्यों से उत्पन्न वासना भी इन्हें गुमराह कर रही है। यही कारण है कि दिमाग से कुंद संजली के हत्यारे योगेश ने वही किया जो एक नायक पर्दे पर दूर जाती नायिका को देखकर कहता है कि काजल यदि तुम मेरी नहीं हो सकती तो मैं तुम्हें किसी और की नहीं होने दूंगा।   

संजली की घटना कोई अंतिम घटना नहीं है, बल्कि अभी अगली किसी और ऐसी ही घटना का इंतजार कीजिए, क्योंकि किशोरों के मन पर फिल्मों, सीरियलों का बढ़ता प्रभाव योगेश जैसे न जाने कितने लोगों के दिमाग में घर किये बैठा है। यदि हम अब भी नहीं संभले तो संजली आखिरी लड़की नहीं है जिसे जिन्दा जलाया गया और न उसका हत्यारा योगेश आखिरी दरिंदा है जो ऐसे कदम उठाएगा. घटनाये होती रहेंगी, खबरें छपती रहेंगी लोग पढ़कर दुःख और अफसोस मनाते रहेंगे।

राजीव चौधरी

स्वतन्त्र लेखन के साथ उपन्यास लिखना, दैनिक जागरण, नवभारत टाइम्स के लिए ब्लॉग लिखना