लघुकथा

लिखे जो खत तुझे

कामिनी जी बड़ी बेचैनी से डाकिये का इंतजार कर रही थी ।
आखिर क्यों ना इंतजार करे , गाँव में इण्टरनेट नहीं होने के कारण अपने पोते से चिट्ठी भेजकर ही संदेश और प्यार लुटाती थी ।और रवि भी अपनी दादी को कम से कम महीने में एक खत जरूर भेजता था । डाकिया जैसे ही पत्र दिया वह बेचैनी से पढ़ने बैठ गई….
आदरणीया दादी माँ
सादर प्रणाम
” दादी माँ आपके हाथों के बेसन के लड्डू आज भी बहुत याद आ रहे हैं । और जब भी मेरी परीक्षा शुरू होने वाली होती थी ,आप हमारे साथ अपने रातों की नींद हराम कर लेतीं थीं । दादी माँ आज भी जब हमारे बच्चे पढ़ने में रौशनी का रोना रोते हैं तो आपके हाथों बने किराशन तेल का दीया आँखों के आगे आ जाता है । जानती हैं दादी माँ इन्वरटर और बिजली अब चौबीस घंटे उपलब्ध है पर आपका वो हाथ से पंखा झलना , और शाम होते ही उस दवा की शीशी वाले दीये की तेल बाती देखकर जलाना ।
“ओह दादी माँ ! आज भी जब हमारे बच्चे पढ़ने बैठते हैं तो आपका स्नेह और ममता मयी मूरत के साथ वह उम्मीद का दीया भी याद आ जाता है ।”
“दादी माँ ; आपके होते बचपन की हर यादें आपसे जूड़ी ही याद आती हैं । गाँव में भले ही बिजली नहीं आई थी, पर आप हरपल मेरी पढ़ाई और शिक्षा का चिंता करती थीं ।
चिट्ठी पढ़ते पढ़ते आँखों से कुछ नमकीन सा खाड़ा पानी बहने लगा । हाँथों से पोछकर पुनः पढ़ना शुरु की …..
अरे! ये क्या आप तो रोने लगी ; मत रोइए, मेरी दादी माँ तो संघर्ष के दिनों में भी नहीं रोईं फिर आज क्यों रोना । जब भी आपके आँसू देखकर मैं पुछता था ; दादी आप रो रही हैं तो आपका जवाब होता नहीं लल्ला ये तो खाड़ा पानी है। मै नमक बहुत खाती हूँ ना वह आँखों के रास्ते बह जाता है ।
अच्छा अच्छा अब मैं आपसे कुछ माँग रहा हूँ आप मेरा दोस्त गोपाल आ रहा है उसके साथ आपको भी आना है । अब मैं आपकी एक नहीं सुनुँगा आपको आना ही पड़ेगा ।
हाँ दादी आते समय मेरे लिये मेरा सबसे प्रिय तोहफा जरूर लाना ।
और वह और कुछ नहीं , वह है उम्मीद का वो दीया जिसकी झिलमिल रौशनी में जब मैं थोड़ा बड़ा हो गया तो आपके सपने आपके अरमानों को आपकी आँखों में देखने और महसूस करने लगा था ।
हाँ दादी एक आखिरी बात ; बच्चों को बड़ा दिन की छुट्टी होनेवाली है ,मैं फ्लाइट की टिकट गोपाल के साथ भेज रहा हूँ ,आप मना मत किजिएगा जरूर आइएगा ।
प्लीज दादी मना मत किजिएगा , मैं जानता हूँ मुझे खुद लेने आना चाहिए था … पर मुझे पता है आप घर गृहस्थी का ढेरों जंजाल सुनाकर मेरे साथ आने से मना कर देतीं।
पर आपको खुद से ज्यादा लोग क्या कहेंगे उसकी चिंता होती है ।
आपका पल पल इंतजार कर रहा हूँ दादी ,हाँ आते समय बेसन के लड्डू और वह दीया जरूर लाना । आखिर आपका प्यार और आपकी भावनाओं से बना वह उम्मीद का दीया अपने बच्चों को मुझे भी दिखलाना है । चिट्ठी कब की समाप्त हो गई और कामिनी जल्दी से एक दवा की शीशी ढूँढ़कर दीया बनाने बैठ गई ।
आरती राय. दरभंगा
बिहार.

*आरती राय

शैक्षणिक योग्यता--गृहणी जन्मतिथि - 11दिसंबर लेखन की विधाएँ - लघुकथा, कहानियाँ ,कवितायें प्रकाशित पुस्तकें - लघुत्तम महत्तम...लघुकथा संकलन . प्रकाशित दर्पण कथा संग्रह पुरस्कार/सम्मान - आकाशवाणी दरभंगा से कहानी का प्रसारण डाक का सम्पूर्ण पता - आरती राय कृष्णा पूरी .बरहेता रोड . लहेरियासराय जेल के पास जिला ...दरभंगा बिहार . Mo-9430350863 . ईमेल - arti.roy1112@gmail.com

One thought on “लिखे जो खत तुझे

  • लीला तिवानी

    प्रिय आरती, कथा बहुत अच्छी लगी.

Comments are closed.